अश्रुपात्र…A glass of tears भाग – 1
मॉडर्न पब्लिक स्कूल
क्लास 11वीं बी
शालिनी मैडम के हाथ मे काँच का ग्लास था… और ग्लास में पानी … वो भी आधा भरा हुआ।
‘देखना पीहू, मैडम अभी पूछेंगी… ग्लास आधा भरा है या आधा खाली…?’
‘तुझे कैसे पता…?’
‘अरे आधा भरा हुआ ग्लास लायी हैं क्लास में… इस स्थिति में और क्या पूछ सकती हैं यार’
‘श अ अ अ अ … देख कुछ कहने वाली हैं मैडम’
‘बच्चों मेरे हाथ मे जो ग्लास है इसमें थोड़ा सा पानी है… और मैंने इसे इस तरह से उठा लिया… एक हाथ में… सब बच्चों को दिखाई दे रहा है न…?’
अब मुझे ये बताओ कि बिना किसी सहारे के मैं ये ग्लास इसी तरह असानी से कितनी देर पकड़े रह सकती हूँ…?
‘मैडम दस या पन्द्रह मिनट तक… शायद…’ सिम्मी अपनी कही बात पर खुद ही भरम की सी स्थिति में आ गई
‘अच्छा अगर मैं और ज्यादा देर इसी स्थिति में रहूँ तो…?’
‘तो आपके हाथ मे बहुत तेज़ दर्द हो जाएगा मिस’
‘और अगर मैं उसके बाद भी यूँ ही रहूँ तो…?’
‘तो आपका हाथ सुन्न हो जाएगा या शायद आप….’ आरव ने बात बीच मे ही छोड़ दी
‘शायद मैं पेरेलायज़ हो जाऊं या मेरा हाथ ही खराब हो जाए… है न आरव…?’शालिनी मैडम ने मुस्कुराकर पूछा
सब बच्चे चुपचाप सुन रहे थे… पीहू और शुचि ने भी पूरा ध्यान अब अपनी टीचर की बातों पर केंद्रित कर लिया था।
मनोविज्ञान की क्लास यूँ तो हमेशा ही रोचक हुआ करती थी। पर आज सोमवार था… सप्ताह के पहले दिन तो शालिनी मैडम की क्लास में हमेशा ही कुछ न कुछ नया हुआ करता था। शालिनी मैडम कभी अपनी क्लास किसी रोचक घटना से शुरू करतीं तो कभी कोई एक्सपेरिमेंट ही कर दिखातीं। कभी कभी तो कहानी या खेल से भी शुरुआत होती … सभी बच्चे टकटकी लगाए मैडम की बातों में आवाज़ और चेहरे के हाव भाव मे खो जाते।
ज्यादातर बच्चों की ख्वाहिश बड़े हो कर शालिनी मैडम की तरह टीचर बनने की ही थी। पीहू तो ग्यारहवीं क्लास से ही सबसे बड़ी प्रशंसक थी उनकी। उसे शालिनी मैडम के गोरे रंग…नीली आँखे और मोहिनी मुस्कान के साथ साथ उनके साड़ी पहनने का तरीका विशेष रूप से पसन्द था।
‘अरे कहाँ खो गई… देख अब शालिनी मैम अपना एक्सप्लेनेशन देंगी…’
‘प्यारे बच्चों, ज़रा सोचो .. जब ये छोटा सा पानी का ग्लास मैं ज्यादा देर पकड़े रहूँ… तो मेरा हाथ खराब तक हो सकता है … तो फिर उस मन उस मस्तिष्क का क्या हाल होता होगा… जो सारी जिंदगी एक अश्रुपात्र को थामे हुए बिता देता…।’ शालिनी ने अपनी बात को विराम दिया
‘मैम अश्रुपात्र मतलब…’
‘अ ग्लास ऑफ टीयर्स…’ शालिनी ने ट्रांसलेट किया पर बच्चों के चेहरे से लग रहा था कि बात अभी तक उन्हें समझ नहीं आयी है।
अच्छा चलो मैं तुम्हे पहले हॉलीडेज होमवर्क देती हूँ …. फिर तुम्हे मेरी बात अच्छी तरह समझ आ जायेगी’
सब बच्चों ने हां में सिर हिला कर अपनी मौन स्वीकृति दी।
‘कुछ पल के लिए अपनी आँखें बंद करो बच्चों और अपने आसपास मौजूद एक ऐसे प्रौढ़ या बुज़ुर्ग व्यक्ति के बारे में सोचो … जो काफी परेशान हो या बीमार हो या जिसने जीवन मे कोई बहुत खास बहुत अपना खो दिया हो… या जिसने जीवन भर संघर्ष ही किए हों… जो अपने आप मे ही खोया रहता हो… अपने आप से बातें करता हो ‘
शालिनी ने देखा सब बच्चों के मस्तिष्क में कोई न कोई चित्र या करैक्टर तैयार होने लगा था। और कुछ बच्चे अपनी आँखें खोल भी चुके थे… इसका मतलब उन्हें उनका केस मिल चुका था।
‘अब अगर उस व्यक्ति के रोज़मर्रा के क्रिया कलापों पर ध्यान दो… तो पाओगे या तो उस व्यक्ति की अपनी अलग ही एक दुनिया है … या फिर वो ज़रा ज़रा सी देर में सबकुछ भूलने की अवस्था में पहुंच जाता होगा। प्यारे बच्चों ऐसे हर व्यक्ति को हमारे प्यार दुलार, हमारे साथ, हमारे स्नेह की आवश्यकता है। ऐसे लोग जानबूझ कर न तो आपको परेशान करते हैं न ही कोई नुकसान पहुंचाना चाहते हैं। वो तो खुद अपनेआप से परेशान होते हैं।’
‘पर मैम अश्रुपात्र….??’
‘तुम खुद सोचो मान्या जब एक गिलास पानी कुछ घण्टों तक बिना किसी सहारे के पकड़े रहने से हाथ या शरीर को लकवा मार सकता है… तो उम्रभर आँखों के आँसुओ से भरे अश्रुपात्र को… बिना किसी सहारे के… दुनिया से छुपा कर मन मे रखने वाले लोगों के… मन का मस्तिष्क का क्या हाल होता होगा… क्या बीतती होगी उन पर।’
पीहू ने झटके से आँखे खोल दी… उसकी साँस बहुत तेज़ तेज़ चल रही थीं। शालिनी मैम की एक एक बात ने उसके दिल पर हथोड़े की सी चोट की थी।
उसका मन हो रहा था कि वो फौरन घर की ओर भागे … या ज़ोर से चीखे …. ‘नानीईईईई… नानीईईईई’।
‘आगे की कक्षाओं में हम विभिन्न डिसऑर्डर्स के बारे में पढ़ेंगे। पर उस से पहले आप दो दिन की छुट्टी में एक ऐसे ही व्यक्ति पर कैस स्टडी करेंगे…. ओके … ‘ मुस्कुराते हुए शालिनी क्लास से बाहर की ओर चल दी।
पीहू शालिनी मैम के पीछे भागी और शुचि पीहू के पीछे।
‘मैम मुझे कुछ पूछना है आपसे…’
शालिनी ने मुस्कुरा कर हाँ में सिर हिलाया
‘मैम क्या ऐसे हर इंसान को कोई न कोई मेंटल डिसऑर्डर हो क्या ये ज़रूरी है…’
‘हाँ पीहू… बल्कि कुछ लोगों को तो एक से ज्यादा डिसऑर्डर्स भी होते हैं। हम दो दिन बाद क्लास में ये सब डिसकस करेंगे …ओके… अब तुम अपनी केस स्टडी तैयार करो।’ पीहू के घुंघराले बालों में शालिनी ने प्यार से हाथ फिराया
‘अरे यार क्या हुआ… इतनी मायूस क्यों है… तुझे तो आज कुछ होना चाहिए…’
‘क्या मतलब… ‘
‘अरे पीहू… खुश इसलिए कि बाकी सब बच्चों को तो अडोस पड़ोस में ढूँढना पड़ेगा… पर तेरा केस तो तेरे घर मे ही है…’
शुचि ने पीहू को इस तरह से चुटकी मारी की आसपास खड़े बच्चे भी हँस पड़े।
‘चल अब लंच टाइम होने वाला है… मैं तेरे फ़ेवरेट आलू के परांठे लाई हूँ।
शुचि लगभग खींचते हुए पीहू को क्लास की ओर ले गई। पर आज पीहू का ध्यान कहीं और ही था।
क्रमशः
(स्वरचित)
(पूरी कहानी प्रतिलिपि एप्प पर उपलब्ध)