अश्रुनाद
. …. मुक्तक ….
भर मदिर नयन पुलकाती
इठलाती सी बलखाती
फिर मेरे हृदयाँगन में
सुस्मृति मधुरिम छा जाती
डा. उमेश चन्द्र श्रीवास्तव
लखनऊ