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4 Aug 2018 · 2 min read

अश्रुनाद … रत्नाकर

…. अश्रुनाद मुक्तक संग्रह ….
….. त्रृतीय सर्ग …..
…. रत्नाकर ….

उर उदधि- उर्मि लहराती
किस छोर बहा ले जाती ?
फिर कौन प्राण- प्रिय बनकर?
किस छोर कहाँ ले आती?

उन्मुक्त उर्मि सुख पाती
जब क्षितिज छोर से आती
प्रिय ! को छू मानस तट पर
पा तृप्ति लुप्त हो जाती

उत्तुंग प्रेम प्रिय सुखकर
उठती मन-सागर तट पर
लेती हिलोर अभिलाषा
अविरल लहरों में तत्पर

उन्मुक्त उर्मि लहराती
रंगस्थल से टकराती
सूने मानस के तट पर
आकर विलुप्त हो जाती

उत्तुंग उर्मि सखि बनकर
उठती मन- सागर तट पर
अविरल जीवन आशायें
रञ्जित लहरों में तत्पर

लहरों के सँग इठलाती
मँझधार बहा ले जाती
नाविक बिन सूनी नौका
सूने तट से टकराती

उन्मत्त लहर लहराती
तिमिराञ्चल में अकुलाती
शशि मिलने को ललचाकर
उत्तुंग ज्वार बन जाती

आ पास मिले दो प्राणी
मुखरित अन्तस मृदु वाणी
शुचि भव- सागर के तट पर
रच दी फिर प्रेम – कहानी

भव- सिन्धु तरंगित कलकल
अन्तर में अविरल हलचल
जनरव कोलाहित जग में
सुन विकल वेदना चञ्चल

हिय मिलन चाह गहराये
दृग – नीर धार बन जाये
अविरल अभिलाषा मन की
बन प्रेम – सिन्धु लहराये

मन मन्द – मन्द मुस्काये
बन प्रेम- सिन्धु लहराये
आकर फिर मानस तट पर
लहरों सँग घुल- मिल जाये

रिमझिम उल्लसित फुहारें
विस्फारित सिन्धु निहारे
जीवन-अनन्त भव-पथ पर
नौका जग – पाल सहारे

भव – सिन्धु प्रलापित फेरे
लहरें सुनामि बन घेरे
भू – गर्भ प्रकम्पित होता
सुन अश्रुनाद को मेरे

स्वप्निल प्रभात की बेला
स्वर्णिम किरणो ने खेला
भव- जलनिधि की लहरों में
नौका ले चला अकेला

हिय प्रेम – सिन्धु लहराये
जब स्निग्ध चाँदनी छाये
स्मृतियों के मानस – तट पर
चञ्चला स्नान कर जाये

—-#—–#—–

Language: Hindi
512 Views
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