अश्रुनाद … नयनाम्बुक
… अश्रुनाद मुक्तक संग्रह …
. ……..प्रथम सर्ग ……
…. नयनाम्बु ….
लघु बूँदें ले मतवाला
नभ से ऐ ! नीरदमाला
बुझने दे आँसू-नद से
अभिलाषाओं की ज्वाला
इस व्यथित हृदय से आती
अन्तर्मन में अकुलाती
जीवन की मृदु अभिलाषा
आँसू बनकर बह जाती
चञ्चला चारु लट फेरे
चित में चित्रित है मेरे
चलचित्र सचल हो जाते
सुस्मृति चिन्हों से तेरे
अपलक अभिलाष सुहानी
अमृतमय अस्फुट बानी
चञ्चला नेत्र रच देते
हर युग में प्रेम कहानी
अधरों की सुस्मित वाणी
नयनाम्बुक करुण कहानी
फिर नित्य नयी हो जाती
वह प्रीति पुनीत पुरानी
अन्तर प्रतिमूर्ति सुहानी
कम्पित अधरों की बानी
निष्पलक नयन रच देते
मानस में प्रेम कहानी
अभिनव सतरंगी फेरे
झञ्झा झकझोर बन घेरे
हो हाहाकार हृदय में
सुन अश्रुनाद को मेरे
हिय सरस्वती किलकारें
हम गंग जमुन जल धारें
दोनों नयनों में बरसें
बन पावस मेघ फुहारें
दृग- नीर बहे मन डोले
फिर देख मञ्जु मृदु बोले
श्री पद चिन्हों का अंकन
अन्तर के पट जब खोले
नयनों की शुचित चपलता
चञ्चल मन की चञ्चलता
अन्तर आधार शिला पर
जीवन अभिलेख मचलता
अन्तर ध्वनि करुण बुलाती
वह क्षितिज छोर से आती
दुर्गम पथ रीते घट में
सुधियाँ दृग जल भर जाती
सुन्दर संसार हमारा
चिर प्रकृति प्राप्य भव सारा
गिरि तरु नभ अनिल विहंगम
जल सरित सिन्धु जल धारा
सुस्मृति हिय में लहरायी
तब सघन वेदना छायी
आँसू बनकर नभ बदली
घिर आज दृगों में आयी
अन्तस दृग- नीर बहाता
जीवन प्लावित लहराता
फिर प्रखर प्रेम-अभिलाषा
घट- घट क्रमशः बह जाता
युग- युग की प्रीति सुहानी
अस्फुट सञ्जीवी वाणी
अन्तर्मन में प्रतिबिम्बित
नयनों की करुण कहानी
दिन सघन घटा घिर आये
रिमझिम नयना बरसाये
सुधि- किरणो का आवर्तन
सतरंगी हिय हर्षाये
नीरव रजनी में गाता
पिउ-पिउ आलाप सुनाता
आहों की चिर- नगरी में
पपिहा बन सतत बुलाता
निर्जन वन सरित किनारे
अभिलाषित पन्थ निहारे
निष्पलक नयन हिय कल-कल
प्रमुदित प्रिय प्रेम पुकारे
दुर्गम सर्पिल पथ पाया
भव- सरिता ने भटकाया
जीवन- नौका को लेकर
नाविक बिन पार लगाया
रवि अस्ताँचल को जाये
तम सघन हृदय में छाये
जीवन के पथ पर नभ से
जग- तारक राह दिखाये
अस्फुट मधुरिम ध्वनि घट की
नयनों में हिय गति मटकी
सुधियाँ नित धूम मचातीं
मानस में भूली – भटकी
सुरभित प्लावित जग सारा
सरिता सम कल- कल धारा
जीवन सुदृश्य गिरि- अञ्चल
प्रिय ! नगर हृदय अभिसारा
उन्मुक्त क्षितिज से आती
सुस्मित आभास कराती
मधुरिम सुस्मृति नयनों में
आकर वर्षण कर जाती
अनुपम प्रभात दिव्याशा
मधुरिम ललाम प्रत्याशा
स्वर्णिम स्वप्निल प्रिय दर्शन
अन्तर नित नव अभिलाषा
अन्तस में आस जगाये
प्रमुदित मन रुनझुन गाये
सुस्मृति के सजल नयन से
जीवन अञ्जलि भर लाये
मन मञ्जुल ज्वाल सँजोता
बन अभिलाषाएँ होता
स्मृतियों के नयनाम्बुद से
अभिषेक हृदय में होता
प्रतिध्वनियाँ हिय गुञ्जातीं
स्मृति- चिन्हों से टकरातीं
अभिलाषित सघन घटायें
नयनों को आ बरसातीं
प्रज्जवलित प्रेम की ज्वाला
मन ज्योतिर्मय कर डाला
हिय उन्मुख सजल नयन से
ले मञ्जु मृदुल सुधि- माला
कल- कल संगीत रिझाये
जीवन की प्यास बुझाये
सुस्मृतियाँ हिय अभिरञ्जित
नयनों ने नीर सुझाये
. ।। ….. ।।