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27 Jan 2017 · 1 min read

अश्क बनकर निकल गया कैसे

~~~~~~ ग़ज़ल ~~~~~~~

यूँ मुकद्दर बदल गया कैसे /
हाथ से वो निकल गया कैसे //

मेरी आँखों में बस गया फिर क्यूँ /
अश्क बनकर निकल गया कैसे //

हम बहुत दूर आ गए शायद /
रास्ता यूँ बदल गया कैसे //

सोचता रह गया मेरी खातिर /
मेरी जद से निकल गया कैसे //

थी अमावस की रात भी काली /
कोई सूरज निगल गया कैसे //

मोम होता तो मान भी लेते /
सख्त था वो पिघल गया कैसे //

सर्द रातो के ख्वाब थे मेरे /
रुख हवा का बदल गया कैसे //

~~~~~ विजय शान ~~~~~

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