अश्क बनकर निकल गया कैसे
~~~~~~ ग़ज़ल ~~~~~~~
यूँ मुकद्दर बदल गया कैसे /
हाथ से वो निकल गया कैसे //
मेरी आँखों में बस गया फिर क्यूँ /
अश्क बनकर निकल गया कैसे //
हम बहुत दूर आ गए शायद /
रास्ता यूँ बदल गया कैसे //
सोचता रह गया मेरी खातिर /
मेरी जद से निकल गया कैसे //
थी अमावस की रात भी काली /
कोई सूरज निगल गया कैसे //
मोम होता तो मान भी लेते /
सख्त था वो पिघल गया कैसे //
सर्द रातो के ख्वाब थे मेरे /
रुख हवा का बदल गया कैसे //
~~~~~ विजय शान ~~~~~