अश्क तन्हाई उदासी रह गई – संदीप ठाकुर
अश्क तन्हाई उदासी रह गई
उन दिनों की याद बाक़ी रह गई
मोड़ पे वो आँख से ओझल हुआ
बे-क़रारी राह तकती रह गई
तितली की परवाज़ कैसे देखता
आँख तो रंगों में उलझी रह गई
सपने तो सपने थे सपने ही रहे
ज़िंदगी सपने सजाती रह गई
बाढ़ का पानी तो उतरा है मगर
हर तरफ़ सड़कों पे मिट्टी रह गई
फिर दोबारा दोस्त हम बन तो गए
पर दिलों में थोड़ी तल्ख़ी रह गई
खो गई बचपन की वो मा’सूमियत
जो खिलौनों को तरसती रह गई
शाम ने थक के समेटा तो बदन
धूप फिर भी छत पे बिखरी रह गई
मंज़िलों तक थे मुसाफ़िर हम-सफ़र
राह आख़िर में अकेली रह गई
एक कश्ती दूर साहिल पे खड़ी
बस नदी की लहरें गिनती रह गई
संदीप ठाकुर
Sandeep Thakur