अशिकों को पैगाम
रोज पैदल पैदल चलकर में स्कूल जाया करता हूं,
हर दिन सुबह उसी कली को अक्सर देखा करता हूं।
कली एक है भंवरे अनेक ऐसा प्रतीत होता है,
क्योंकि कली के पीछे पीछे देखा भंवरा उड़ता है।
मैंने पहली बार किसी कली को इतना सुंदर देखा था,
सामने आते ही कली को मन प्रफुल्लित हो जाता था।
आज पहली बार किसी कली को बिना पंखुड़ियों के देखा था,
मानो स्वर्ग की अप्सरा है ऐसा प्रतीत होता था।
उसी कली की चक्कर में घर से निकल मैं जल्दी आता हूं,
रोज पैदल पैदल चलकर मैं स्कूल जाया करता हूं।
क्या सही है क्या गलत ख्याल तो इसका भी नहीं,
शायद पहला प्यार हुआ है इसका भी संज्ञान नहीं।
प्यार प्यार बहुत सुना था आज करके देखा है,
दिल में न जाने क्या-क्या हो रहा ऐसा भी होता है।
मैंने हिम्मत करके एक दिन उसी कली से पूछा,
मुझे जानना है आप कहां से इसलिए मैंने पूछा।
कली मुस्कुराकर यूं बोली क्या करना है जानकर,
मैंने भी हंसकर कह दिया पूछा है अपना मान कर।
बोलो जल्दी बोलो फिर में अपने घर जाता हूं,
रोज पैदल पैदल चलकर मैं स्कूल जाया करता हूं।
इसी हसी के चक्कर में गहरा प्यार हुआ है,
अब तो खाना लेकर आती इतना प्यार हुआ है।
कहै “आलोक” प्यार करो करो मगर तुम सच्चा,
बीच मझधार में छोड़कर भागे जैसे हो तुम बच्चा।
कुछ लड़के प्यार से पहले करते है तकरार,
लेकिन प्यार का झा सा देकर करते है खिलवार।
ऐसी बातें रोज न जाने में कितनी देखा करता हूं
रोज पैदल पैदल चलकर मैं स्कूल जाया करता हूं
हर दिन सुबह उसी कली को अक्सर देखा करता हूं।
रोज पैदल पैदल चलकर मैं स्कूल जाया करता हूं।
✍️✍️ आलोक वैद “आजाद”??
एम० ए० (समाज शास्त्र)
मो ० 8802446155