Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
20 Jun 2022 · 1 min read

अविरल

डॉ अरुण कुमार शास्त्री – एक अबोध बालक – अरुण अतृप्त

🎀 अविरल 🎀

मन के सन्तापों को कब चैन मिला जग में
ये उतना ही था भटका जितना घूमा जग में ।।
पल पल भरमाया देख देख इसकी माया
संतर्पण को लेकर था भृमित आत्म किसमें ।।
ये काल कपाल भृकुटी मण्डपमा
नल नील निकन्दन बृज के वासी ।।
माला उलझ गई जब माला में
बिखरे मोती सगरे जग में ।।
मन पागल भौंरा डोल गया
तन सुधि न रही किसी के बस में ।।
सीता डूबी विरहन से मृग
स्वर्ण गयो छल बुद्धी को ।।
राम पठाये निज स्वार्थ को
वाके पीछे भ्राता लछ्मन को ।।
जनक दुलारी अजोधा की महारानी
ठगी गई साधु भेस लख रावण को ।।
अब कोस रही कर कर विलाप
न देख सकी कटु भावन को ।।
मन के सन्तापों को कब चैन मिला जग में
ये उतना ही था भटका जितना घूमा जग में ।।
पल पल भरमाया देख देख इसकी माया
संतर्पण को लेकर था भृमित आत्म किसमें ।।

1 Like · 265 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from DR ARUN KUMAR SHASTRI
View all
Loading...