अविरल आंसू प्रीत के
तुझे याद करूँ कितना ये बात कहूँ कैसे
फरियाद करूँ कितना बिन तेरे रहूँ कैसे ।
जब चाँद स्वयं मेरा मुझसे खुद रूठ गया
पूछें आँखों से आँसू ‘अविरल’ मैं बहूँ कैसे ।1।
ये आँसू नहीं है प्रिये! जज्बात ये गिरते हैं
शिकवा ना गिला कोई पर सवालात ये गिरते हैं ।
गर प्रीत जो की जग में तो निभाने का भी हुनर रखो
वफा पे घायल ‘अविरल’ना तेरी औकात पे मरते हैं ।2।
आशीष अविरल चतुर्वेदी
प्रयागराज
(सर्वाधिकार सुरक्षित लेखकाधीन)