अविभाज्य का विभाजन
अनहोनी हुई थी उस रात को
जब पता चला मेरा घर मेरा नही
बिताए जहां पर दशक कई
सिंधु के सिक्को की तरह दफ़न
ज़माने बीत गए उस बात को
जो अनहोनी हुई थी उस रात को
निर्दयता का बांध टूटा
जब नवेली दुल्हन की मांग से सिंदूर छूटा
छाती फट गई उस बाप की
जिसके जवान बेटे का साथ छूटा
दंगो ने भी कसर न छोड़ी
नोचकर ताज़ी घाव को
जो अनहोनी हुई थी उस रात को
इंसान का नही इंसानियत को भी शर्मसार किया
धर्मो का ही नहीं दिलों का बटवारा
हुआ
उन नन्हें हाथो को बेरहमी से पीटा गया
क्या उस कातिल की आंखों में शर्म थी न हया
सिंधू के सिक्को की तरह दफ़न
ज़माने बीत गए उस बात को
जो अनहोनी हुई थी उस रात को
~अनुज