अवला मैं कैसे तुझे भूलूँ…
अवला मैं कैसे तुझे भूलूँ …
हरपल और हरदम मैं बस तेरे ही साथ रहूँ ।
अवला मैं कैसे तुझे भूलूँ …..
जन्म से पहले नौ माह तक,
मैं इक अबला के साथ रहा ।
हुआ जन्म जब गौद में पाया ,
तूने आया रूप धरा ।।
अवला मैं कैसे तुझे भूलूँ …..
एक दो क़दम चलन जब लागा,
हाथ मेरा किसी बहन और बुआ ने थामा ।
दिन में कई बार किया शौच मैं,
फ़िर किसी महिला ने मुझे साफ़ कराया ।।
अवला मैं कैसे तुझे भूलूँ……
जब मैं यौवनावस्था में आया,
स्कूल -कॉलेज का मौसम छाया ।
बहन मेरी लगी करने स्त्री ,
माँ मेरी ने मुझे भोजन खिलाया ।।
अवला मैं कैसे तुझे भूलूँ…….
बड़ा हुआ शादी अब हो गई,
घर में खुशियाँ ले एक महिला लाई ।
अब एक नया रिश्ता और गढ़ गया,
मैं एक महिला का पति बन गया ।।
अवला मैं कैसे तुझे भूलूँ……..
समय बीत रहा नए बन रहे रिश्ते,
हर रिश्ते को एक महिला जोड़ती ।
बिन महिला क्या बचेगा विश्व में,
नादान मनुष्य क्यूँ नहीं समझता ।।
दिन-प्रतिदिन की संकीर्ण व्यवस्था,
स्त्री रूप रहा इससे झुलसता ।
“आघात” तुम्हें करना होगा ,
आदर इस महिला जाति का ।।
कल फ़िर किसी से मत कहना,
कि आज हुई मेरी माँ, बहन, पत्नी, बेटी संग घटना ।।
अवला मैं कैसे तुझे भूलूँ….
हरपल ओर हरदम मैं तेरे ही साथ रहूँ..
आर एस बौद्ध”आघात”
8475001921