अवध के राम
आस्था और अनास्था का दीप जलाए बैठे है
मंदिर बनेगा राम का ये उम्मीद जगाए बैठे है
त्रेता से कलयुग आ गया सत्ता के गलियारों में
सत्ता के लोलूप वोट की खातिर कब से रिझाए बैठे है।
सरयू का कलकल पानी अब धूनी रमाए कहती है
करना जिन्हें उद्धार राम का तम्बू वहीं लगाए हैं
विडंबना है अपनी अवधपुरी तम्बू में शीश झुकाए है
जय श्रीराम कहने वाले नाम पर कमल खिलाए बैठे है।
अवशेष कहानी कहते है अवधपुरी है श्रीराम लला की
कुत्सित विचार बाबर ने मस्जिद है बनवाई इस्लाम की
धर्म मजहब के चक्कर में आपस में शीश कटाए है
सत्ता वोट धर्म मजहब है जिनका वहीं लड़ाए बैठे है ।
मानवता अब शर्मसार है अब जन्म प्रमाणित करना है
किस मिट्टी से जन्म लिया अब कोर्ट में साबित करना है।
मानवता की अस्मत खातिर कोर्ट ने यह उपाय सुझाए
आपस में विद्वेष मिटाओ पर मजहबी मौन लगाए बैठे है।
एक बार कोलाहल उठेगा फिर राम मंदिर बनवाने को
कभी हाथ कभी कमल उठेगा धर्म की राग जगाने को
जाती पाती मजहब की बाते चलेंगी लोगो को उकसाने को
सत्ता पाने की खातिर नेता जनता पर घात लगाए बैठे है ।
एक नया राग आलाप रहे है अब मंदिर बनवाने को
अब तक बना नहीं जो मंदिर कानून बनवाने को
सुध बुध कहा खो गई थी तब जब सत्ता में वो आए थे
आया फिर चुनाव जब खोल पिटारा आस लगाए बैठे है।
इतनी कुबत कहा किसी की जो मंदिर बनवाएगा
जब मर्जी उनकी हो जाए वहीं मंदिर बन जाएगा
जो है जग के खेवनहार उनकी नईया कौन पार लगाएगा
मंदिर बनेगा अवधपुरी में जहां श्रीराम धूनी रमाए बैठे है ।