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8 May 2020 · 3 min read

अवगुणों के नेपथ्य में छिपे गुण।

मेरे द्वारा यह लेख दूरदर्शन पर प्रसारित हो रहे ऐतिहासिक धार्मिक धारावाहिक “रामायण” के मेघनाथ वध प्रसंग के पश्चात लिखा गया था।
हम कैसे अवगुणों में से गुणों को निष्पादित करें ,आइये देखते हैं।

मेघनाथ वध आज सम्पन्न हुआ।बुराई पर अच्छाई की जीत का अध्याय बस कुछ दिनों में अपने कालकोष मे समा जाएगा।
सत्य,प्रेम,धर्म,त्याग,समर्पण,मातृत्व भक्ति,पितृभक्ति,भातृभक्ति सहित हमे अनगिनत अमृत रूपी संस्कार रामायण सीखा जाएगी।
मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम के जीवन से अगर हम एक प्रतिशत भी सीख जाएँगे तो हमारे अंदर छुपे रावण का वध स्वतः हो जाएगा और इस कलयुग में अगर कण भर भी सतयुग घुल गया तो ये कलयुगी जीवन धन्य हो जाएगा।

मानव जीवन की प्रवत्ति होती है,अच्छाई से मिली अच्छाई को जल्दी धारण करने की,परन्तु बुराई के नेपथ्य में छिपे गुणों को हम शीघ्र नहीं पहचान पाते।ऐसा होना लाज़मी है क्योंकि बुराई का पर्दा और सत्य का प्रकाश हमे अवगुणों में से गुणों को पृथक नहीं करने देता।आइये आज हम इन्हीं बुराईयों में से गुणों को छानने का प्रयत्न करते हैं।

मेघनाथ अधर्मी था सारा जग इससे विदित है,परन्तु उसके समक्ष ऐसे कई गुण हैं जिन्हें हम नकार नहीं सकते। मेघनाथ की पितृ भक्ति को हम मिथ्या नहीं मान सकते,क्योंकि जब उसे यह ज्ञात हो गया था कि जिनसे वो युद्ध कर रहा है वह कोई और नहीं अपितु स्वयं श्रीहरि अवतार श्रीराम व शेषनाग अवतार लक्ष्मण जी हैं।यह जानने के पश्चात उसने अपने पिता रावण को समझाने का भरपूर प्रयास किया की प्रभु श्रीराम से बैर ठीक नहीं,परन्तु अपने अहंकार में चूर रावण जब नहीं माना तो भी मेघनाथ ने अपनी पितृ भक्ति व राष्ट्रभक्ति को जीवंत रखा। वह जानता था कि उसका मरण आज निश्चित है फ़िर भी उसने अपने पिता का साथ नहीं छोड़ा।
मेघनाथ और श्रीराम की पितृ भक्ति की कोई तुलना नहीं,पर फ़िर भी प्रभु श्रीराम ने अगर पितृ भक्ति में 14 वर्ष वनवास स्वीकार किया तो मेघनाथ ने अपनी मृत्यु।
जब मंदोदरी ने उससे कहा मानव मुक्ति के मार्ग में अकेला जाता है और तुम प्रभु श्रीराम के शरण मे चले जाओ,तो उसका जवाब था पिता के लिए सब कुछ छोड़ना तो स्वयं प्रभु श्रीराम से ही सीखा है।
और पिता को ठुकरा कर अगर उसे स्वर्ग मिल भी जाए तो वह उसे अस्वीकार कर देगा।
#पुत्र का बस एक #धर्म होता है #पिता के #चरणों मे अपनी #सुख_सम्पति_विलासिता और अगर आवश्यकता पड़े तो जान भी न्यौछावर कर देना।
और इसी कारण प्रभु श्रीराम ने मेघनाथ का शव सम्मान सहित लंका को सौंपा था।

ठीक इसी प्रकार हम कुंभकर्ण से भी बहुत कुछ सीख सकते है।
उसके भातृ धर्म से अनुकरण करने लायक कई बातें है जैसे भटके हुए भाई को सही मार्ग बताना परन्तु न मानने पर उसका साथ न छोड़कर उसके साथ रहना।
कुंभकर्ण ने भी रावण को समझाने के अत्यंत प्रयास किये,परन्तु रावण की अधर्म की प्रवत्ति को परास्त नहीं कर पाया,और विवश हो कर श्रीराम के हाथों मरना स्वीकार किया।

मेरी पोस्ट को अन्यथा न लेकर हम यह सीख सकते है की कैसे बुराई से अच्छाई को पृथक करे।
मेरे अनुसार रामायण की यह महानता और पवित्रता ही है कि हम रामायण के हर एक पात्र से कुछ न कुछ अर्जित जरूर कर सकते है।
रामायण का अर्थ ही है जहाँ श्रीराम का हो वास,और जहाँ प्रभु श्रीराम हो वहाँ हमें विष से भी अमृत प्राप्त हो सकता है।

जय श्रीराम।

#राधेय

Language: Hindi
Tag: लेख
10 Likes · 15 Comments · 420 Views
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