अल्फ़ाज़ बिखर गए
********* अल्फ़ाज़ बिखर गए *********
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तुझे देखते ही जुबान से अल्फाज़ बिखर गए,
ईरादे जो किये थे जज्बात मुकर गए।
सोचा था जब मिलोगे प्रेम इज़हार करेंगे,
वक्त पास आया सारे हालात पसर गए।
सफेद मोतियों से थे शुद्ध विचार मन में,
दिल मे जो जन्में थे सभी अरमान अखर गए।
आँखों ही आँखों में खूब बातें होती गई,
मुलाकात होने लगी तो वो किनारा कर गए।
हिम्मत बहुत जुटाई थी अधर में लटक गई,
मौका आने पर हम तिरस्कार से थे डर गए।
मन की बातें मन ही मन में धरी ही रह गई,
स्वप्न जीने मरने के अधूरे ही मर गए।
मनसीरत आज भी बीते पलों पर पछताए,
बिना किसी बात के वो खामख्वाह लचर गए।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)