” अल्फाज- ए- इश्क “
” अल्फाज -ए- इश्क ”
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झटक दो जुल्फ अपना तुम
सुबह से शाम हो जाए
चलो जो बल खाके तुम
समुंदर में लहर उठ जाए !
नशा जो आंखों से छलकाओ तुम
समुंदर भी शराब हो जाए
पिला दो होठों से जो जाम तुम
मधुशाला भी बेनूर हो जाए !
लहरा दो जो आंचल अपना तुम
गगन में बादल छा जाए
छलका दो जो होठों से पानी तुम
सूखे में भी बरसात हो जाए !
उड़ा दो खुशबू जो बदन कि तुम
हवा भी मदहोश हो जाए
महकती फूलों की डाली हो तुम
गुजरे जो वहां से भंवरा हो जाए!
शबनमी रातों की चांद हो तुम
देखे जो तुम्हें चकोर हो जाए
बरसे जो कभी स्वाति कि बदरी हो तुम
नेह के प्यासे हम पपीहा हो जाए !
पहन लो धानी जो कपड़ा तुम
फिजा भी सावन हो जाए
लगा लो होठों पर लाली जो तुम
शाम सिंदूरी हो जाए !
बोल दो अधरो से जो तुम
मेरे अनकहे अल्फाज गजल हो जाए
उठा लो पलकों को जो तुम
शाम से भोर हो जाए !
बांध लो बालों में जो गजरा तुम
रात भी चांदनी हो जाए
खिली यौवन की बगिया हो तुम
तेरी यौवन कस्तूरी हो जाए !
मेरे सांसो में जो है वही अल्फाज हो तुम
तेरी मोहब्बत ही मेरी पहचान हो जाए
मैं साहिल तेरा मेरी माही हो तुम
दुआ कर सत्येन्द्र बिहारी तेरा हो जाए !
***** सत्येन्द्र प्रसाद साह(सत्येन्द्र बिहारी)*****