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1 Jul 2022 · 10 min read

अल्फाज़ ए ताज भाग-2

1.

देखो बुजुर्गों की जायदाद से आज हम बेदखल
हो गए हैं।
ऐसे लगे जैसै हमारे ही घर में हम अपनों से कतल
हो गए हैं।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

2.

अच्छा किया तुमने उस टोकरी को खरीद कर।
बेचने वाली देखो मेहनत के सही दाम पा गई।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

3.

हर्फ क्या बदले वसीयत के लोगों हम तुम्हारे लिए बेअसर हो गए है।
आए थे हमारे हिस्से में जो बाग वो सारे के सारे बेशज़र हो गए हैं।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

4.

जो हुआ था गुनाह कभी माजी में हमसे।
देखकर आज उसको दिल परेशान है गमसे।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

5.

कहने को तो दुनिया से कहता हूं मुझे तेरी परवाह नहीं।
पर चुप चुप कर वह रोना मेरी जिंदगी का जाता नहीं।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

6.

हर आंख-आंख की पसंद हो जरूरी तो नहीं।
तुम्हे पूंछना था उससे रिश्ता लगाने से पहले।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

7.

हैं हर नज़र में अब बस मेरा ही घर शहर में।
जो मकान था दिवार-ए-दर सजाने से पहले।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

8.

समझा दो कोई उसको खुल कर ना बोले इतना यहाँ।
इस शहर में पाबंदियाँ बड़ी है इज़हार-ए-इश्क-ए-उल्फ़त में।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

9.

जाकर देखा झोपड़ी के अन्दर वह बूढ़ा बीमार था बड़ा।
शायद खानें के लिए कुछ कह रहा था कांपते-कांपते।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

10.

लगता है वो आखें रोते-रोते ही सो गयीं हैं।
वरना रुख़सार पर ये निशां कहाँ से आयें।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

11.

मैंने भी बनाए है कुछ वसूल जीने के लिए।
पर तेरी खुशी की खातिर यह टूट जाए तो परवाह नहीं।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

12.

कहाँ ढूढते हो तुम खुदा को इधर से उधर मस्जिद-ओ-मंदिर।
घर में ही है अक्स उसका जिसे तुम अपनी माँ समझते हो।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

13.

देर रात घर के दरवाजे पर दस्तक दूं मैं किसको।
डर लगता है दूसरों से इसीलिए मां को आवाज दे दिया करता हूं।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

14.

पूछते पुछते पहुँचा बाजार में जहाँ रौनकें महफिलें थी
बड़ी।
बिकनें के लिये हर दुकान पर वहाँ कई ज़िन्दगीयाँ थी खड़ी।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

15.

वह पढ़ता है अक्सर नमाजें तन्हाइयों मे जाकर तन्हा।
चमक जो है उसके चेहरे पर वो नूर है खुदा की इबादत का।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

16.

बूढ़े चाचा अब स्कूल वाली बस अपनी बस्ती में लाते नही।
बच्चों का स्कूल है घर से बहुत ही दूर तुम अभी आना नही।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

17.

सियासत की है बड़ी मजहब पर इन स्याह सियासत दानों नें।
बंट गया है सारा शहर ही कौमों में तुम अभी आना नही।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

18.

दोस्तों नें मेरे मुझको सिखाया तो बहुत कि अब दुश्मनों की मुझको जरूरत नहीं।
दे दिया है हमनें जिसको कुछ भी सही फिरसे पानें की उसको मुझे हसरत नहीं।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

19.

एक वक़्त था यारों जो लगे थे कतारों मे।
आज मिलने के लिए वह वक़्त दे रहे हैं।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

20.

खरीद लो गरीब लड़की के बनाए मिट्टी के दिये।
उसके भी घर में चश्म-ए-चारागां हो जाये।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

21.

वह याद ना आये सोने के वक़्त बिस्तर मे हमको ऐ
ताज।
इसलिए देर शाम से इस मयखानें में जाम पे जाम पी
रहा हूं मैं।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

22.

मरना भी अगर चाहे तो वह अपनी मर्जी से मर सकती
थी नहीं।
क्योंकि पहरे की हर निगाह होती उस पर थी हर
घड़ी।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

23.

हमने भी जी सजा थी तुमने भी जी सजा थी।
हर चीज़ की वज़ह थी कुछ भी ना बे वज़ह थी।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

24.

यह कौन सा कहर है मजहब का जिसमें उजड़े सारे आशियाने हैं।
चलो बसाएं उस बस्ती को इक बार फिर से शायद वो आबाद हो जाए।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

18.

दोस्तों नें मेरे मुझको सिखाया तो बहुत कि अब दुश्मनों की मुझको जरूरत नहीं।
दे दिया है हमनें जिसको कुछ भी सही फिरसे पानें की उसको मुझे हसरत नहीं।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

19.

एक वक़्त था यारों जो लगे थे कतारों मे।
आज मिलने के लिए वह वक़्त दे रहे हैं।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

20.

खरीद लो गरीब लड़की के बनाए मिट्टी के दिये।
उसके भी घर में चश्म-ए-चारागां हो जाये।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

21.

वह याद ना आये सोने के वक्त बिस्तर मे हमको ताज।
इसलिए देर शाम से इस मयखानें में जाम पे
जाम पी रहा हूं मैं।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

22.

करते हैं ऐहतराम तेरा खुदा के बाद जहां में।
देखे हर सिर झुक जाए ऐसी शराफत हो तुम।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

23.

कोई बता दे उनसे कि अभी मैं जिंदा हूं मरा नहीं ।
कभी कभी आफताब भी बादलों में खो जाता है।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

24.

यूंही तो बेवजह दिल किसी का ऐसे होता नहीं।
आँखें क्यों रोयीं है तेरी दर्द से मुझे बतलाओ ना।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

25.

अजनबी से होते जा रहे हैं किसी से क्या कहूं और क्या सुनू।
एक मां ही है ऐसी जिससे कुछ कह सुन लिया लिया करता हूं।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

26.

उसको देखना हर किसी की नजर में नहीं।
पता तक भी उसका अब तो कहीं इस शहर में नही।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

27.

हर शाम महफिलें शाम थी कोठी की कभी।
अब कोई भी मेजबानी इसके दीवारों – दर में नहीं।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

28.

अपनें हिस्से की माल-ओ-जर उसने उसे दे दी।
उसकी वजह से देखो वह गरीब अब बे ज़र में नहीं।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

29.

या खुदा लबों पर मेरे इतनीे हंसी हमेशा बनाए रखना।
चाह कर कोई मेरे जख्मों को गिने भी तो गिन ना पाए।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

30.

आ जाऊँ तेरी आँखों की नींद बनकर तू सोजा
मुझको रातें बनाके।
बेकरारी तो इतनी है धड़कनों में कि जी लूँ मैं तुझको सासें बनाके।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

31.

तुमसे तो अच्छी है मेरी परछाई जो हमेशा साथ चलती है।
दिले दोस्त जैसी है मेरी तन्हाई जो हमेशा साथ रहती है।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

32.

गर कोई गम है तो दे दो मूझे जीने के लिए हमतो गम से है ही भरे।
पूंछ लो दीवानों से आशिको का दिल होता है बहुत बड़ा।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

33.

कोई भी इल्जाम ना दूंगा मैं ज़िन्दगी में तुम्हें।
यूँ डरने की जरूरत नही ऐसे अंदेशों से तुम्हें।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

34.

खुद से लड़ना है ज़िन्दगी में अब तो मुझे।
अब किसी से ना कोई जीत ना कोई हार है।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

35.

होती नहीं है अब तिलावते कुरान की घरों में तुम्हारे।
हर किसी परेशानी की शिफा है खुदा के कुरान में।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

36.

ये क्या हुआ है तुमको क्यों दूर हो रहे हो?।
थोड़ा सा सब्र रखो कलमें के अकीदे पर ताकत है बड़ी खुदा के कलाम में।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

37.

भीड़ में अक्सर ही उनको अपने से गैर बनते देखा है।
कोई जाकर उनसे पूछे आखिर इसकी क्या वजा है?।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

38.

कभी वक्त मिले तो उससे भी बात करना।
बदल जाएगा सारा तुम्हारा जो भी ख्याल है।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

39.

तू सोचकर तो देख खुद में कि ऐसे हालात हैं क्यूँ मेरे।
एक आम से इंसान की इस तरह की जिंदगी नहीं होती।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

40.

तोहमत न लगा मुझ पे सिलसिला तोड़ने का।
तुम्हें सोचना था ये तो दिल दुखाने से पहले।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

41.

क्या तहरूफ़ कराना मुझसे उस मेहमाँ का।
उसको जानता हूं मैं बहुत जमाने से पहले।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

42.

ऐसा नहीं है कि मुझको तुमसे ज़िन्दगी
कोई भी शिकवा और शिकायत नहीं।

नाशाद हूँ मैं अपने दिल से बहुत ही मगर
गिला करना किसी से अब मेरी आदत नही।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

43.

बहुत कोशिश की पुरानी चादर से खुद को पूरा ढकने की।
पर मेरे पैरहन मे थे इतने छेद कि छिपे भी तो छिप ना पाए।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

44.

हम जैसों की कोई नहीं है यारो ज़िंदगी।
एक तो बिगड़ी किस्मत ऊपर से ग़रीबी।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

45.

कुर्आन की हर आयत से जिंदगी को समझना।
यूं दिखावे की खातिर मस्जिदों में नमाजें ना पढ़ना।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

46.

उसने भी भर दिया पर्चा इस बार सदर के चुनाव का।
उसको लगता है कि लोग उसके हक में मतदान करेंगें।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

47.

ऐसे नहीं वह गरीब तरक्की याफ्ता हो गया है आते-आते ही शहर में।
ध्यान देता है वह कारोबार में हर छोटी व बड़ी बारीकी का।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

48.

सभी कहते थे कि वह बड़ा ही कमजोर है दिल का।
पर उसको तो बड़ा फख्र है वतन पे अपने बेटे की शहीदी का।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

49.

तोहमतों का बाजार देखो बड़ा चलने लगा है।
आदमीं ही आदमीं को अब तो खलने लगा है।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

50.

शराफत तो देखो मेरी कि उनकी महफ़िल में हम अंजान बन के आये।
शरारत तो देखो उनकी बज्म में मेरे ही कत्ल का सामान बन के आये।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

51.

आ जाऊँ तेरी आँखों की नींद बनकर तू सोजा
मुझको रातें बनाके।
बेकरारी तो इतनी है धड़कनों में कि जी लूँ मैं तुझको सासें बनाके।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

52.

उनको छूनें से लगता है डर कि बड़े नाजुक से हैं कहीं वह टूट ना जायें।
करने को कर दूं महफ़िल में इशारा नजरों से पर कहीं वह रूठ ना जायें।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

53.

दर्द है ये रूह का तुम यूँ समझ ना पाओगे।
जब मिलेंगें कभी तो इत्मिनान से बतायेंगें।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

54.

अपने ही घर में देखो आज हम ज़लील हो गए।
तोहमतें लगाकर हम पर सब ही शरीफ़ हो गए।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

55.

इज़हार भी कर देंगे हम उनसे अपने इश्क का थोड़ा समझ ले उनको।
कोई उनका जानने वाला, मेरा दिल से उनका तआर्रुफ़ तो कराये।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

56.

सभी को दिख जाएंगे यकीनन तेरे गुनाह इस वारदात में।
एक माँ ही हैं जो दोष ना देगी तुझे यहाँ सब की तरह।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

57.

वह बढ़ा चढ़ा कर पेश करता है हमेशा अपनी हस्ती।
हर सच को झूठ, झूठ को सच बना देता है जाने वो कैसे।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

58.

इक उनके दूर जानें से हम बेकार हो गए है।
ऐसा लगे जैसे पढ़े पन्नों के अखबार हो गए है।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

59.

चुनाव का रंग धीरे धीरे चढ़ने लगा है।
नेताओं का अपनापन दिखने लगा है।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

60.

हर कोई हमको भूल जाएगा जिस दिन आंखे हमारी बंद हो जाएंगी।
एक माँ ही होगी बस रिश्तों में जिसको शायद यादें हमारी आएंगी।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

61.

एक बार फिर से नेता खोखले वादे आवाम से करने आएंगे।
किसी शूद्र के घर में दिखावे की इंसानियत में खाना खाएंगे।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

62.

सभी को लगता था उसने जी है अपनी ज़िन्दगी बड़ी बे रूखी में।
हुज़ूम तो देखो जनाजे का सारा शहर ही आया है उसको दफ़नाने में।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

63.

सुनना कभी गौर से उस आलिम की तकरीरों को अकेले में तन्हा।
उसको बड़ी महारत हासिल है कौम को मज़हब के नाम पर बड़कानें में।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

64.

पा लेगा तू इस जहां में सब कुछ खुदा के करम से।
मां-बाप ने गर दुआ कर दी खुश होकर तेरी खिदमतों से।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

65.

काश मेरे पापा जैसे होते गर हर लड़की के पापा।
कोई फर्क ना पड़ता फिर लड़की हो या लड़का।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

66.

प्रेम से कहते है सब मुझको…
किस्मत वाली बिटिया हाँ किस्मत वाली बिटिया।
अपने पापा की मैं हूँ…
सबसे प्यारी बिटिया हाँ सबसे प्यारी बिटिया।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

67.

खत के संदेशें में संदेशा था सब भाइयों के लिए।
ख्याल रखना माता पिता का उसकी खुशी के लिए।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

68.

वह जानें नहीं देता है किसी को भी कोठी के उस अंधेरे हिस्से में।
शायद कुछ पुराने राज छिपे है नीचे उस बंद पड़े तहखाने में।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

69.

मुद्दतों बाद खबरे आयी है हवेली में खुशियों की बनके सौगात।
शाम-ए-महफ़िल में यहाँ हर सम्त आज ज़ाम पर ज़ाम चलेंगें।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

70.

मेहनत करके वह अपने बच्चों को अच्छी तालीम दिला रहा है।
देखना यही बच्चें आगे जाकर उसका जमानें मे बड़ा नाम करेंगें।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

71.

मोहब्बत तो मोहब्बत थी कोई कारोबार ना थी मेरी ज़िन्दगी में।
वरना मैं भी कर लेता सौदा तुम्हारे बाप से तुम्हारी बेहयाई का।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

72.

यह और बात है कि मैं तुम्हें बददुआ देता नहीं कभी।
पर चाहता हूँ तुम्हें भी अहसास हो ज़िंदगी में
अपनों की जुदाई का।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

73.

खामोश हैं हम बड़े तेरे हर इक लगाए इल्जाम पर।
अब इतनी भी हदें पार ना करो कि सब्र छोड़ दें हम।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

74.

सोच समझकर बोला कर तू हमेशा यहां की आवाम में।
तेरे अल्फ़ाज हैं दंगों की तरह सारे शहर में फैल जाएंगें।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

75.

मेरी दिल्लगी देखो आज मेरे काम आ गई है।
उनकी कई हसीन शामें मेरे नाम आ गई है।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

76.

कैसे बचता मैं अपने कातिलों से शहर में।
वो मेरे पैर से बहते हुऐ खूँ के निशाँ पा गये।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

77.

उसको खबर है सबकी वह जानता है सबको।
उसके फरिश्ते मुश्तैद है हर शक्स के शानो पर।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

78.

एक अरसे से भटक रहा हूं तेरे शहर में यहाँ से वहाँ बनके साकिब।
पर मेरे कदमों को तेरे घर का पता ना जानें क्यों मिलता ही नहीं।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

79.

उसको खबर है सबकी वह जानता है सबको।
उसके फरिश्ते मुश्तैद है हर शक्स के शानो पर।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

80.

दिखते नहीं परिंदे उन दरख्तों की शाखों पर।
नाजिल हुआ है कैसा कहर तुम्हारें मकानों पर।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

81.

बिगड़े पलों का जिम्मेवार मै मानूं किसको।
ज़िन्दगी में यह सब तो खाँ मों खाँ आ गये है।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

82.

पाना तेरा इत्तेफाक ना था मेरा कोई।
यह मेरी ही दुआ है जो मेरे काम आ गई है।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

83.

वह मेरी ही बनाई तस्वीरें है जिन्हें चुराया गया है।
मुझे रंगों भरे हाथ दिखाने से पहले धोना ना था।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

84.

नूरें कमर से शामें बज्म होती थी अपने शवाब पर।
एक वक्त था सभी मेहमान कायल थे यहाँ के आदाब पर।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

85.

उफ ये सादगी तुम्हारी कातिल ना बन जाये।
बड़ी ही खूबसूरत हुस्न की कयामत हो तुम।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

86.

खामों खां नजरें उठती हैं महफिल में हर आनें-जानें वाले पर।
काश दिख जाए तू यूं ही बस खैर-ओ-खबर के लिए।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

87.

मेहमाँ तो बहुत थे महिफलें जाँ ना था कोई।
एक आमद से तेरी महफिले शाम छा गई।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

88.

डरता नहीं हूं मरने से ऐ मेरी जिंदगी।
पर उनको तन्हाई दे दूं इतनी मेरी हिमाकत नहीं।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

89.

भूल ना पाओगे तुम शहादत इन शहीदों की।
हस्ती भगत,आजाद की वह मुकाम पा गई है।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

90.

एक सिसकती हुई आवाज सुनते हैं पड़ोस के घर से।
मालूम हुआ इक माँ रोती है अलग हुए अपने पिसर के लिए।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

91.

मजहब की नजर में कोई छोटा बड़ा ना होता है।
झूठे बेर खिलाकर साबुरी देखो श्री राम को पा गई है।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

92.

रात भर जागता हूं मैं जाने क्या-क्या सोचा करता हूं।
जिंदगी रुक सी गई है अब तो हर रोज यही किया करता हूं।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

93.

यह कौन सा बाजार है जहाँ इंसानो की तिजारत होती है।
बोली लगती है यहाँ आबरु की हर घड़ी आबरु बिकती है।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

94.

शुमार होता था उसका एक वक़्त शहर की आला हस्तियों में।
वह है उस कोठी का मालिक जिसे तुम दरबान समझते हो।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

95.

इक बस तेरी ही कमी है जिंदगी में मेरी।
वैसे तो खुदा ने नवाजा है हमें बड़ी रहमतों से।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

96.

आ गया है उनका इश्क़ देखो अब अलग होने के मोड़ पर।
कोई क्या जानें इस रिश्तें में किसकी कितनी ख़ता है।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

97.

हम बुरों के बिना तुम अच्छों को कौन पूछेगा।
अपनी पहचान की खातिर हम बुरों को बुरा ही कहना।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

98.

शायद कमर को भी होने लगी है जलन उसके चेहरे के नूर से।
तभी तो आती नहीं है अब चांदनी उसके घर की छत पर रात में।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

99.

कत्ल कर देते तुम शौक़ से इश्के वफ़ा बनकर।
तुमको मारना ना था हमको हमारी इज्जत गिराकर।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

100.

पहचान ना सकोगे मेरे गमों को तुम किसी भी नजर से।
मुस्कुराने का यह हुनर मैंने सीखा है बड़ी मेहनतों से।।

✍✍ताज मोहम्मद✍✍

Language: Hindi
Tag: शेर
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