अल्फाज़ ए ताज भाग-1
1.
तमाशा बन गया हूँ तुम्हारी महफ़िल में आकर।
खूब इज्ज़त दी तुमनें हमको मेहमान बनाकर।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
2.
मैँ जानकारी रखता नहीं कि यह जमाना मुझे क्या समझता है।
किस किस को देखूं हर किसी से मेरा खयाल ना मिलता है।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
3.
कहा था तुमसे हमको चाहो या ना चाहो सनम।
एक दिन जाएंगे तुमको अपने गम में रुलाकर।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
4.
मेरे महबूब तुझे क्या हुआ है जो आज इतना मुस्कुरा रहा है।
ऐसा होता है तभी जब दिल के सेहरा में जमाने बाद इश्क़ बरसता है।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
5.
मेरे महबूब हम तेरी मोहब्बत में सभी हदों से गुजर जाएंगे।
कोई जिद ना है तुझको पानें की बस अपने दिल से है हम मजबूर।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
6.
मांगते क्या हो दीवानों से चाहने के तुम सुबूत।
परवाने ने की वफ़ा खुद को शम्मा में जलाकर।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
7.
मत लो मेरे सब्र का यूँ इम्तिहान इतना ज्यादा।
तरस ना जाओ कहीं तुम हमसे मिलने मिलाने को।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
8.
ज़िंदगी में तुम हमको ना समझ सके कोई भी गम नही दिल मे।
पर इंतज़ार हम करेंगें तेरा तुम चले आना मेरी मय्यत पर जरूर।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
9.
ज़िंदगियाँ लुटती है यहाँ इस शहर में यूँ तो रातों दिन।
तू अनजान है इन सबसे से मेरा फर्ज था तुझको बताना।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
10.
तुमको समझाऐ तो समझाऐ कौन तुम हो बड़े मगरूर।
गलती नही है इसमें किसी की भी क्योंकि तुम्हारी परवरिश में ही है गुरुर।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
11.
हर चीज है बाज़ार में बिकने के लिए इन्सानों की दुनियां में।
एक माँ के ही रिश्ते की मोहब्वत का कोई भी बाज़ार ना लगता है।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
12.
तुमनें सोचा हम यूँ ही चुपचाप अपना प्यारा शहर छोड़ जायेंगे।
वक़्त का तकाजा है खामोशी आगे मौत का मंजर मचाएंगे।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
13.
ऐ दिल चल फिर से उनसे इश्क़ किया जाये।
एक बार और प्यार में उनके रोया हँसा जाये।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
14.
आवाम नेताओं से ऊबी है फिर भी दरिया दिली अपनी दिखाती है।
थक हार कर कैसे भी हो जनता अपना वोट डालकर आती है।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
15.
कोई जाकर जरा समझे दे उनको रिश्तों को निभाना।
यूँ लड़ना बेवजह हर वक्त मसले का हल होता ना सदा।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
16.
थोडा वक़्त और रुक जाओ दोस्तों घर को अपने जाने के लिए।
कबसे खड़े है उनके मोहल्ले में खुदा उनका दीदार तो कराये।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
17.
सभी को दिख जाएंगे यकीनन तेरे गुनाह इस वारदात में।
एक माँ ही हैं जो दोष ना देगी तुझे यहाँ सब की तरह।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
18.
उनकी शानो शौकत पर होता था भरम।
मिलनें पर पता चला आदमीं हैं ज़मीनी।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
19.
वह रहता है हक-ए-ईमान पर आवाम की ख़ातिर।
उसको पता है फिर भी कुछ लोग उसे बदनाम करेंगें।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
20.
कब से बचा के रखा है इक तेरे लिए हमनें दिल।
ले लो इसको कि अब आरजूऐ और दबेंगी नहीं।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
21.
किसी रिश्ते को ना बांधो रिवाज-ओ-कानून के दायरे में ।
किसी बच्चे को यूँ मां से ऐसे दूर करना भी एक सजा है।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
22.
पढ़ा जाएगा वह किताबों में ताज मरने के बाद भी।
दुनिया के लिए बन गई उसकी हस्ती बेमिसाल है।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
23.
मेरा उनसे मिलना किसी काम का नहीं।
सुना है मैंने सबसे वह तुम्हारा है करीबी।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
24.
ना मालूम है जिंदगी के मसाईल उनको।
पता है उन्हें कि वे खुद से दगा कर रहे हैं।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
25.
इक जानी अनजानी सी कमी है जिंदगी में मेरी।
वैसे तो खुदा ने नवाजा है हमें बड़ी रहमतों से।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
26.
मिलता नही है हमको कहीं अब खुश बशर।
हर दिल मे है ना जानें कितना दर्द।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
27.
सनम देखो मेरा बड़ा है अश्किया।
दिल लेकर हमको जख्म है दिया।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
28.
मानते है दुनियाँ में उनको दीन की राह में मिली आजमाईशें बहुत।
पर क़ुरबतों से उठकर हश्र में इनकी रूहें जन्नत में मक़ाम पाएंगी।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
29.
शिकायत थी उनकी कि हम उन्हें मिलते नहीं।
तो बनके खुसबू उनके बदन की महका जाये।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
30.
हैरान हूं मैं उसके यूँ पहचानने से।
माँ सब कुछ कैसे जान जाती है।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
31.
इक तोतली गुड़िया है हमारे भी घर पर।
जो सबके लबों पर मुस्कान लाती है।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
32.
हर शम्त ही उठा है ताज ये शोर कैसा?
देखो तो बाहर निकलकर शायद कयामत आयी है।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
33.
आये थे वह कत्ल करने हमको।
जो मेरे शिफा-ए-गम बन गए है।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
34.
जानता था मैं कि वह परेशान हो जाएगा।
ना जानें उसको कैसे फिर भी मेरे जख्म दिख गए है।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
35.
हर रिश्ता बंधा है मोहब्बत की नाज़ुक डोर से।
ऐसा ना हों टूट जाये वह तेरी खींचा तानी से।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
36.
खत लिखकर भेजा है तुमको संदेशा पढ़ लेना।
कह तो देता सामने भी पर तुमको रोता देख पाता नही।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
37.
तुमको लगता है यह मुक़ाम बस तेरे दम पर हो गया है।
बहुतों ने की है तेरी कामयाबी की दुआएं।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
38.
तोहमत लगाकर अच्छा ना किया तुमने मुझ पर।
कुछ तो ख्याल कर लेते अपने रिश्ते का।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
39.
पोते ने साफ़ कर दी देखो दादा जी की ऐनक।
शायद उनको यह चाहता बहुत है।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
40.
गौर से देखों नज़रे भी बोलती है।
तुम्हे क्या लगा यह बस सोती जागती है।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
41.
चले जाया करो जल्दी शाम को अपने घर।
दो आंखे तुम्हारा रास्ता देखती है।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
42.
आ अव चले साकी मयखाने से अपने घर।
रहना तो वहीं ही है हमे उम्र भर।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
43.
इस बार शरारत दिखती नही उसके बताने में।
शायद उसको सच मे है कोई दिक्कत।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
44.
अब तो तआरुफ़ दे दो तुम अपना हमे।
हमको तो पढ़ लिया है तुमने पूरा का पूरा।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
45.
अम्मा ने दे दी सारी मिठाई छोटे को।
बड़ा होना भी यूँ दिक्कत देता है।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
46.
तेरी तस्वीर ही काफ़ी है दिले सुकूँ के लिए।
मिलना हमारा अब मुमकिन नहीं।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
47.
हम तो बस पूँछने आये थे उनकी ख़ैरियत।
हमें क्या पता था वह बदनाम हो जायेगें।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
48.
कुछ तो तुमनें और कुछ तो ज़माने ने उड़ाया हमारा मज़ाक।
अब तो मेरी ख़ामोशी ही देगी इसका तुम दोनों को जवाब।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
49.
आपको आने में देर हो ही जाती है।
यह आदत है तुम्हारी या इत्तिफ़ाक़ है।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
50.
ख़ामोशी भी अज़ब होती है।
चुप रहकर भी सब बोलती है।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
51.
कभी हमसे भी मिलों यूँ अपना समझ कर।
इतने भी बुरे नही है हम यारों समझने पर।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
52.
तरकीबें तो तुम्हे आती है सबको फसाने की।
पर इस बार क्या करोगे सामने तुम्हारे खुदा जो है।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
53.
इस गली में सौदा होता है तन की आबरू का।
मत आया कर इधर तू वरना बेवजह ही बदनाम हो जाएगा।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
54.
गुनाहों के सहारे अमीर बनकर अब वह दीनदार बन गए।
कल तक थे जो गुमनाम हर दिन के अब वह अखबार बन गए।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
55.
मेरी ज़िन्दगी के हर मौसम में वह मेरे जान ए बहार बन गए।
मैं जान ही ना पाया कब वह हमारी रूह ए जान बन गए।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
56.
तुम्हें लगता है कि तुम इस आवाम की आवाज़ बन गए।
खुशफ़हमी है तुम्हारी कि इतना लिखकर तुम कलाम बन गए।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
57.
खामोश शख्सियत पर ना जाना मेरी दुश्मनों।
गर आया ज़िद पर तो मिट जाओगे बुझदिलों।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
58.
क्यों करते हो इतनी ज्यादा मोहब्बत तुम हमसे।
ये इश्क़ है जालिम इसमें दिले सुकूं खो जाता है।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
59.
जल्लादों से कह दो रुक जायें फकत कुछ लम्हों के लिये वो सब।
दीवाना देख ले इक बार उनको पल भर के लिए कि वह आयें हैं।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
60.
वह पढ़ता है अक्सर नमाजें तन्हाइयों मे जाकर तन्हा।
चमक जो है उसके चेहरे पर वो नूर है खुदा की इबादत का।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
61.
जलील ना करते हम यूँ ही चले जाते दिल को समझाकर।
और अहसास भी ना कराते हम तुमको कुछ भी बताकर।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
62.
तुम करके तो देखते वफ़ा हम तुम्हें मिल जाते।
बेबस थे हम बड़े करते ही क्या जो दूर ना जाते।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
63.
ये दोज़ख की आग उसको क्या जलायेगी।
उसके पास माँ की दुआएँ आना है जारी।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
64.
कर लेता हूं सब पे अक़ीदा मैं बहुत जल्द।
क्योंकि खुदा खुद है मेरे पास मेरी रूह में।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
65.
ज़िन्दगी बदल गयी मेरी यूँ मज़ाक मज़ाक में।
मुझे क्या पता था ऐसा नशा होता है शराब में।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
66.
ना क़ातिलों सा था ना फ़रिश्तों सा था।
कोई तो बताये हमें वो शख्स कैसा था।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
67.
ऐ वक़्त ज़रा रुक जा हम भी तैयारी कर ले।
सुना है आज मेरे महबूब आ रहे है हुजरें में।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
68.
सुना है वो मोहब्बत का है बड़ा गहरा समंदर।
चलो डूब कर हम भी देखते है उसके अन्दर।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
69.
आह मज़लूम की अर्श तक जाएगी।
खुदा की खुदाई को फ़र्श पर लाएगी।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
70.
मिल जाएगी तुमको भी जन्नतुल फिरदौस।
गर तुम उस गरीब को दिलों जाँ से हँसा दो।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
71.
चले आया करो शाम को तुम जल्दी घर।
इंतज़ार तेरा करती है अपनों की नज़र।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
72.
बनावट दिखती नहीं है उसके बताने में।
शायद सच्चाई है उसके इस फसाने में।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
73.
चलो फिर से अपने बचपन को जिया जाए।
खेल खेल में कुछ हारा तो कुछ जीता जाए।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
74.
क्यों तुमनें इतनी जहमत उठाई ख़ंजर से हमको मारने की।
हम दे देते अपनी जान ऐसे ही बस जरूरत थी तुम्हे मांगने की।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
75.
हम तो पूँछने आये थे यूँ ही बस आपकी खैरियत।
हमे ना पता था आप देखोगे हमारी हैसियत।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
76.
गौर से देखो नज़रे बोलती है।
दिल के सारे राज खोलती है।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
77.
तेरी इक तस्वीर ही काफी है दिले सुकूँ के लिए।
अब यह नादां ना तड़पेगा तुमसे मिलने के लिए।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
78.
यूँ तो सब की ही मुरादे पूरा कर दी खुदा ने मुझको छोड़कर।
शायद मेरा तरीका ही गलत था ऐसे मांगने का।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
79.
ऐ ज़िन्दगी चलों चलें हम वहाँ पर।
सुकूँ के पल हमको मिले जहाँ पर।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
80.
मेहमान बन कर यूँ ज़िन्दगी कहाँ कटती है।
जहाँ में जीनें के लिए एक घर भी जरूरी है।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
81.
तेरी मुहब्ब्त को जिया तेरी नफरत को जिया।
हमनें तो जी भरके यूँ तेरी फितरत को जिया।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
82.
उनको भी ज़िन्दगी जीने का तरीका आ गया,
हमको भी रिश्ते निभाने का सलीका आ गया।
कहनें सुननें में तो दोनों यूँ एक से ही लगते है,
पर अलग दोनों में जीने का नज़रिया आ गया।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
83.
ना जानें खुदा ने उसको क्यों अता की जन्नत।
किसी काम की ना रही मेरी इबादतों की मन्नत।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
84.
हमारी ज़िन्दगी का कुछ हासिल ना हुआ।
कश्ती को हमारी कोई साहिल ना मिला।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
85.
लो अब तो वजह भी दे दी तुमको मारने की हमनें।
देखो खुदा से मांग ली अपनी दुआओं में मौत हमनें।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
86.
उनको छूने से लगता है डर कहीं वह टूट ना जाये।
इशारा तो कर दे महफ़िल में पर कहीं वह रूठ ना जायें।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
87.
कौन से बाज़ार से तुमने नफरत खरीदी है।
बाताओं क्या वहाँ मोहब्बत भी बिकती है।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
88.
कैसा है मेरा इश्क़ ए जुनूँ कैसी है मेरी कैफियत।
दिल को क्या हुआ है हर पल पूँछता है तेरी खैरियत।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
89.
लो तुम भी आये और यूँ ही गैरों से चले भी गए।
सबकी तरह तुम भी हमको रुस्वा ही कर गए।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
90.
कहते है जो देते है हम दुनियाँ को बदलें में वही हमकों मिलता है।
गलत है यह हमारे साथ तो कुछ भी ऐसा ना हुआ है।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
91.
मोहब्बत में आशिकों तुम सब इतना
क्यों कर गुज़रते हो।
इसके अलावा और भी ज़रूरी काम है
वो क्यों नही करते हो?
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
92.
उनको शिकायत है कि हम बहुत बोलते है उनसे मोहब्बत के लिए।
गर खामोश हम हुए तो देखना तरस जायेंगें वह हमें सुननें के लिए।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
93.
अल्फ़ाज़ों की कारागरी हमको आती नहीं।
लो सीधे-सीधे कहते है हमें आपसे मोहब्बत है।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
94.
इक अजब सी मुझ पर वहशत है तारी।
जबसे हुआ है इश्क़ तबसे है ये बीमारी।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
95.
लोगों में यह कैसी वहशत है,
हर दिल में जैसे कोई दहशत है।
जिसको भी देखो डरा हुआ है,
शहर में फैली हर शू कैसी नफरत है।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
96.
डरते है तुम से, कहीं मेरे दिल को तुम से मोहब्बत ना हो जाए।
अब ना पढ़ेंगे तुझको ज्यादा कहीं तू मेरी
आदत ही ना बन जाए।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
97.
अरे वाह क्या अजब इत्तेफ़ाक़ है,
हमारा यह घर भी तुम्हारे पास है।
सोचता हूँ जाने कैसा अहसास है,
तभी तो लगता तू हर पल पास है।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
98.
जब देखो तब नजरों को अश्क़ देकर जाते हो।
अक्सर अपनी कड़वी बातों से हमको जलाते हो।।
मत लो मेरे सब्र का यूँ इम्तिहान इतना ज्यादा।
तरस ना जाओ कहीं तुम हमसे मिलने मिलाने को।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
99.
यह मेरा तुम्हारा क्या है।
तुम मैं अब हम है,यह सबकुछ हमारा है।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍
100.
यह शहर है हुस्न वालों का यहाँ दिल ना लगाना।
तुम हो अभी मासूम इश्क के नाम पर धोखा ना खाना।।
✍✍ताज मोहम्मद✍✍