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17 Oct 2021 · 2 min read

अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक का भेदभाव राष्ट्र विघातक (लेख)

अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक का भेदभाव राष्ट्र-विघातक
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“हम अल्पसंख्यक नहीं हैं। अल्पसंख्यक शब्द अंग्रेजों का निकाला हुआ है। अंग्रेज यहाँ से चले गए । अब इस शब्द को डिक्शनरी से हटा दीजिए । अब हिंदुस्तान में कोई अल्पसंख्यक वर्ग नहीं रह गया है ।”-यह उदार विचार बिहार के नेता तथा संविधान-सभा के सदस्य श्री तजम्मुल हुसैन ने संविधान-सभा में बहस के दौरान व्यक्त किए थे । अगर इन विचारों पर अमल किया गया होता तो देश के सामने अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक के विभेदीकरण की समस्या उत्पन्न नहीं होती । राष्ट्र में एकीकृत वातावरण जन्म ले चुका होता। न कोई अल्पसंख्यक होता ,न कोई बहुसंख्यक। अपितु सब अपने आप को केवल भारतीय मानकर व्यवहार कर रहे होते । “एक राष्ट्र एक जन” का भाव धार्मिक दृष्टि से देश पर प्रभावी होता ।
ऐसी स्थिति में अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक विभेदीकरण के कारण देश में विभाजन की मानसिकता पूरी तरह समाप्त हो गई होती । यह वही मानसिकता थी जिसके कारण अंग्रेजों ने पाकिस्तान के निर्माण के विचार को परिपक्व किया तथा देश को दो टुकड़ों में बाँट दिया। होना यह चाहिए था कि देश-विभाजन की भयंकर भूल के बाद इस बारे में विचार किया जाता कि अब धर्म के आधार पर देश की मानसिकता में कोई दरार न आने पाए । लेकिन संविधान के अनुच्छेद 30 के नाम पर अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक का विभाजनकारी कदम उठाया गया । जिसका परिणाम यह निकला कि एक प्रकार से वोट बैंक की राजनीति को प्रश्रय मिला । स्थिति यहाँ तक आ गई कि एक समय में देश के प्रधानमंत्री द्वारा यहाँ तक कहा जाने लगा कि भारत के संसाधनों पर पहला हक अल्पसंख्यकों का है ।
हिंदुओं में इन सारी स्थितियों को देखकर निराशा और दुख का भाव जन्म लेना स्वभाविक है । वह यह सोचने के लिए मजबूर हैं कि आखिर उन्होंने ऐसा क्या अपराध किया है कि इस देश में उन्हें दूसरे दर्जे का नागरिक बनने के लिए विवश किया जा रहा है । उनके साथ कानून के धरातल पर भेदभाव बरता जा रहा है ।
देश में अल्पसंख्यक जब किसी शिक्षा-संस्था को स्थापित करते हैं ,तब उन्हें उस शिक्षा-संस्था को संचालित करने का भी अधिकार होता है जबकि बहुसंख्यक वर्ग अपनी शिक्षा संस्थाएँ स्थापित तो कर सकते हैं । उन्हें संचालित करने के अधिकार पर कभी भी सरकार पहरा बिठा सकती है । यह भेदभावपूर्ण स्थिति शोचनीय है ।
सबको बराबर का अधिकार मिलना चाहिए । न किसी का उत्पीड़न हो ,न कोई शोषण का शिकार हो । धर्म एक समतामूलक न्यायपूर्ण व्यवस्था की स्थापना में भेदभाव उत्पन्न न कर सके । अनेक भूतपूर्व रियासतें जहाँ सैकड़ों वर्षो तक हिंदू जनता शोषण और उत्पीड़न का शिकार नवाबी शासनकाल में रही ,वहाँ भी अब राष्ट्रीय स्तर पर हिंदुओं को बहुसंख्यक कहे जाने के कारण पुनः दूसरे दर्जे की नागरिकता के दौर से गुजरना पड़ रहा है । यह भेदभाव कदापि मान्य नहीं किया जा सकता ।
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लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451
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Language: Hindi
Tag: लेख
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