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1 Jan 2019 · 1 min read

अलविदा २०१८

?? “अलविदा २०१८” ??
??????????

देख रहे हैं धरती अम्बर,
फिर से गुजरा एक दिसम्बर।
चूल्हा बुझा पतीली खाली,
तन मन जीवन पड़े दिगम्बर।
फिर से गुजरा एक दिसम्बर….

हाड़ कँपाती सर्दी देखो,
खान दुखों की लेकर आती।
हाय गरीबी तेरी भी जय,
मरते दम तक साथ निभाती।
तंगहाल करने की ठाने,
बैठा हो मानो विश्वम्भर।
…..फिर से गुजरा एक दिसम्बर।

फटेहाल जनता को वादे,
वही सियासत पहले जैसी।
भूख गरीबी लाचारी में,
खुशियाँ होंगी कितनी कैसी?
पड़े रईसों के रेहन में,
भू स्वामी के जेवर कम्बर।
…..फिर से गुजरा एक दिसम्बर।

बेटी की शादी है बाकी,
माँ खाँसे है बिना दवाई।
मुन्ना मुन्नी पहन चीथड़े,
पत्नी की करते जनवाई।
दबा कर्ज में वो नवजाया,
रहना होगा जिसे अनम्बर।
…..फिर से गुजरा एक दिसम्बर।

नित मर-मरके जीवन जीना,
मिला धूर में खून पसीना।
दाने दाने को तरसे हैं,
कब तक जहर पड़ेगा पीना?
‘तेज’ हलाहल पी इस जग के,
मानव शिव सा हुआ दिगम्बर।
…..फिर से गुजरा एक दिसम्बर।

??????????
?तेज✏️मथुरा✍️

Language: Hindi
Tag: गीत
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