अलविदा दो हजार बीस
नमन●●●●●
सफरनामा 2020 अलविदा दो हजार बीस
#दो_हजार_बीस_से_वार्तालाप
शुक्ला जी:- और भाई दो हजार बीस जा रहे हो?
दो हजार बीस:- जी शुक्ला जी जा रहा हूँ पर जाते – जाते इतना अवश्य ही कहना चाहूंगा आप सभी का यह तीन सौ छियासठ दिनों का साथ मेरे लिए अविस्मरणीय रहा, इस एक वर्ष में आप में कोई भी ऐसा इंसान नहीं होगा जो मुझे भुला हो। मैं सालों भर सबके जुबां पर निरंतर रहा।
शुक्ला जी:- भाई दो हजार बीस सच कहा तूने, इन एक वर्षों में हम में से कोई भी इंसान तुझे भूल न सका और नाही ताजिन्दगी भुला पायेगा। तूने जो यातनाएं हमें दी है, इस दौर में हम जिन वेदनाओं से गुजरे, रूबरू हुये वो भुलाने लायक हैं भी नहीं।
मित्र तुम से एक बात अवश्य ही कहना चाहते हैं…..!
दो हजार बीस:- हां हां अवश्य कहिए आप सभी से हमारा रिश्ता आत्मीयता का है।
शुक्ला जी:- भाई जब जा ही रहे हो तो अपने साथ जिस नामुराद को लेकर आये थे उसे भी अपने संग ही लेकर जाओ।
दो हजार बीस:- शुक्ला जी ऐसा लग रहा है हमारा साथ आप सबों को अच्छा नहीं लगा।
शुक्ला जी:- दोस्त इस सवाल का जवाब हम से बेहतर तुझे पता है, याद करो जब तुम आये थे हम सभी ने पटाखे फोड़कर, शहर दर शहर, गाँव दर गाँव सजावट कर , घरों में पुये पकवान बनाकर बड़े ही गर्मजोशी से तुम्हारा स्वागत किया था, तुम से हमने बड़ी उम्मीदें लगा रखी थीं। तुम आये पहले दिन से लेकर अगले कुछ दिन सभ्य बनकर हमें बहलाते रहे फिर तुमने अपना असली रंग दिखाना आरंभ किया ।
दोस्त हमने जो स्वप्न में भी नहीं सोचा था तुमने वैसे दिन दिखाए।
हम घरों मे कैद हो गयें, अपने अपनो के पास जाने भर से भी कतराने लगे। कुछ घर शमशान बने तो कईएक घरों के चिराग बुझ गये। यहाँ तक भी हमने बर्दाश्त किया, परन्तु बर्दाश्त की हद तो तब हुई जब इंसान को इंसान से जोड़े रखने वाली संवेदना को ही तुमने मार डाला।
उदाहरण:- बेटे का मृत शरीर पड़ा है, पर बाप देखने तक को तैयार नही, पिता तड़प तड़प कर प्राण त्याग रहा पर बेटा दिलाशा देना तो दूर की कौड़ी उसे एक नजर देखने तक को तैयार नहीं ।
जिधर देखो बस मातम ही मातम, शहनाई की जगह सायरन ने ले ली, भजन – कीर्तन, पूजा- पाठ सब बंद, देवालयों में ताले लगे, भक्त को भगवान से विलग कर दिया तुमने, कोलाहल और क्रन्दन के शिवाय आखिर तुमने दिया ही क्या है?
तुम्हारे कुकृत्य इतिहास के पन्नों में सदा के लिए दर्ज होंगे और जबतक इस धरती पर जीवन रहेगा , इंसान रहेगा सभी तुझे लानत भी भेजेंगे। तुम्हारे कुकृत्य तो कालापानी की सजा लायक हैं फिर भी हमारी भलमनसाहत देखो हम तुझे बिना कुछ नुकसान पहुंचाये ही बिदा कर रहे है।
दो हजार बीस:- वाह शुक्ला जी आपने तो हमारे संपूर्ण दामन को ही दागदार बता दिया परन्तु आप सभी अपनी बताने से परहेज़ कर गये।
शुक्ला जी:- भाई हम सबों ने ऐसा क्या किया जो उसका बखान करें?
दो हजार बीस:- सही कहा आपने! आप सबों ने किया हीं क्या है, हर दिन प्रलय का समान आप सब बनाते जा रहे हैं, अणु, प्रमाणू, रसायनिक शस्त्रों से भंडार दर भंडार भरते जा रहे हैं, नदी नालों को गंदा, हवा, पानी यहाँ तक की खाने की वस्तुओं तक को रसायनिक खादों से जहरीला आप सब बना रहे, आये दिन ईश्वरीय सत्ता को चुनौती आप सब दे रहे हैं और कालापानी की सजा जैसा कुकृत्य मेरा। क्या दोहरी मानसिकता है आप सबों की।
जिस बात के लिए आप मुझ बेजुबान पर दोषारोपण कर रहे है यह कोरोना वायरस भी आप में से ही किसी सरफिरे मनुज के सत्ता परस्त सोंच का दुष्परिणाम है।
किसी इंसान ने ही अपनी सत्ता सिद्ध करने के लिए यह वायरस बनाया और दोषी हम ठहराए गये। शुक्ला जी जो लोग साथ रहकर भी परिवार से दूर थे हमने उन्हें एक दूसरे से जोड़ा। अपने तो अपने लोग बेगानों के मदद के लिए खड़े हुये यह हमने किया। जहाँ तक बात संवेदना की है तो आप सबों ने संवेदना नामक इस जीव को स्वार्थपरता के कारण पहले ही मार डाला था बस उस शव की अर्थी को कांधा देने का कुकर्म मैनें किया है। और इस अनचाहे कुकृत्य के लिए मैं खुद को दोषी मानता भी हूँ।
फिर भी आप सभी से करबद्ध प्रार्थना है हो सके तो मुझे माफ कर देना और आगंतुक नववर्ष दो हजार इक्कीस का तहेदिल से स्वागत करना।
आप सभी को मेरा नमन।
अलविदा दोस्तों……।।।
✍️पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’
मुसहरवा (मंशानगर)
पश्चिमी चम्पारण
बिहार