अलविदा दोस्तो
अलविदा दोस्तो
अलविदा दोस्तो मैं चला मैं चला
रात गहरा रही
आस की एक लड़ी
टूटती जा रही
मैं बनाऊं तो क्या
टूटे सपनोँ का घर
ढूंढूं किरणे कहाँ, रोशनी को किधर
बेवजह अपनी राहों में मिटने चला
अलविदा दोस्तो मैं चला मैं चला।
चाक पैबंद के इन निशानों को गर
चूम कर आहों से सी भी डाला तो क्या
ज़िन्दगी के कड़वे फलसफे को गर
एक ही घूँट में पी भी डाला तो क्या
साथ में बदनसीबी का आलम लिए
आसमां आंसुओं से भिगोने चला
अलविदा दोस्तो मैं चला मैं चला।
जल गए आशियाँ, मेरी गर्मी ही में
जल गया आसमान
आग के ये बवंडर उठे न उठे
डूबते चल दिये प्यार के मरहले
बुझ रही है शमां, खो गए कद्रदां
है नहीं अब मयस्सर ये तेरा जहां
तेरी यादों के सागर में मिटने चला
अलविदा दोस्तो मैं चला मैं चला।
डॉ विपिन शर्मा