रूठ जाता है
कहां आसान है दुआओं में
सबकी खुशियां मांगना,
अगर रोशनी को मनाओ तो
अंधेरा भी रूठ जाता है।
हमारा साथ रहना
उनकी बेचैनी का सबब है मगर,
इक पल भी दूर जाओ
तो सुकून छूट जाता है।
मैं नदी सा बहता हूं
बस एक समुंदर की चाह में,
पर पत्थरों को ठुकराओ तो
किनारा छूट जाता है..!
चांद जैसी चपलता है मुझमें,
एक अनकही विकलता है मुझमें,
मगर सूरत को सजाओं तो
आईना रूठ जाता है।
हमारे दिल की गहराई को
ये छिछला सागर क्या जाने?
पर इस सच को दिल में समाओ तो
सब तक बस झूठ जाता है।।
© अभिषेक पाण्डेय अभि