अलग अलग गजलो के कुछ शेर
खुद में ही सफर करता हूँ,तलाश खुद की करता हूँ
जानें कहाँ गुमा हूँ में, खुद को ही नही मिलता हूँ..
मैं अपने ही घरौंदे मे कुछ इस तरह गुम हूँ
मेले में मासूम जैसे कोई गुमा-सा हुआ..
दर्द-ओ-गम में और ज्यादा उभरता है ये हुनर मेरा,
कि जब मै अंदर से टूटता हूँ तो अल्फाज़ जोड़ता हूँ..
मेरे हर दर्द को अपना ही दर्द समझती है
शराब है ही कुछ ऐसी की सब समझती है..
जब पीतें है हम जाम-ए-दर्द गुफ़्तगू अलग होती है मेरी
कोई कहता है इसे शायरी कोई केहता है इसे गजल मेरी..
शराब ने कुछ इस तरह ही संभाला है मुझको
किसी तूफ़ाँ ने कश्ती को संभाल रक्खा हो जैसे..
वो तारीफ करें या किसी की बुराई करदे
उनकी हर बात दिल-ओ-ज़ेहन पे असर करती है..
मैं जागा हूँ कईं रातों से नई बात नही है
वो जिन्दगी में नही है मेरी ये बात नई है..
इतना नशा अब मेरी इन रगो में हो
की में हूँ कहाँ मुझे होंश भी न हो..
शराब को बेवजह बदनाम करने वालों
होंश में भी हो तुम या फिर सब नशे में हों..
**##कपिल जैन##**