“अर्धांगिनी”
दासी नहीं, प्रिय! चरणों का
तुम प्रेम सधित पावन नारी
तुम अर्धांगिनी, प्रीति का सागर
तुम सदियों से मन भावन प्यारी।।
तुम कदम मिला चलने वाली
कुल की बाधा हरने वाली
तुम सौम्य प्रबल, निष्छल निर्बल
अबला, सबला कहलाने वाली।।
तुमसे हर्षित जीवन सारा
पुलकित गृह, आंगन का तारा
तुमसे है सृष्टि की रचना सारी
तुम बिन संकल्पित जीवन हारा।।
तुम प्रेम प्रभा सिंधु सी गहरी
मेरे दुःख-सुख का हो प्रहरी
तुमसे जुड़ी संवेदनाएं सारी
खुशबू सा तन-मन में बिखरी।।
तुम हो कुलों को जोड़ने वाली
छुई-मुई सी हो सुकुमारी
घिरती सावन की बदरी
तुम प्रणय गीत हो हमारी।।
तुम लक्ष्मी रुप, अन्शूया
तुम प्रेम प्रतीक ललित नारी
तुम देशप्रेम पर मिटने वाली
रण में निर्भीक झांसी की रानी।।
© स्वरचित व मौलिक रचना
राकेश चौरसिया