अर्द्ध रात्रि अंधकार में हुआ।
अर्द्ध रात्रि अंधकार में हुआ।
जग प्रकाश कारागार में हुआ।
भाद्रपद कृष्ण अष्टमी रही।
देवकी न पुनः देवकी रही।
व्यर्थ कंस के सभी प्रयास थे।
सूत्र जबकि सारे उसके हाथ थे।
शिथिल कारावास के बंधन हुए।
बेड़ियां भी हाथ के कंगन हुए।
बंध सब वसुदेव के थे खुल गए।
लेके शिशु आगार से निकल गए।
क्रूर कंस प्रेक्षागार में हुआ।
अर्द्ध रात्रि अंधकार में हुआ।
जग प्रकाश कारागार में हुआ।
सब दिशाएं सिसकती थीं कूप में।
जग नियंता सो रहे थे सूप में।
तात जूझते थे उग्र लहर से।
दूर जाना था उन्हे उस नगर से।
काल सर्प सी बड़े आवेग से।
यमुना चढ़ती आ रही थी वेग से।
छू प्रभु के चरण को संतुष्ट हो।
थम गया उफान उसका तुष्ट हो।
चमत्कार सरि व्यवहार में हुआ।
अर्द्ध रात्रि अंधकार में हुआ।
जग प्रकाश कारागार में हुआ।
सात मारे आठवें की बारी थी।
भयमुक्त होने की सभी तैयारी थी।
क्रूर था अनजान लीला हो चुकी।
मृत्यु बेल अंकुरित है हो गई।
मारने को शिशु को जब कर में लिया।
हाथ से वह छूटकर उपर गया।
बोला तेरे काल गोकुल को गए।
प्राण पापी के बहुत व्याकुल भए।
फलित इसका कंस संहार में हुआ।
अर्द्ध रात्रि अंधकार में हुआ।
जग प्रकाश कारागार में हुआ।