अर्थान्तरन्यास अलंकार घनाक्षरी
गुरू जी के छंद
अर्थान्तरन्यास अलंकार
मनहरण घनाक्षरी
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शहद से अमृत को,कुत्ता न पसंद करे,
भूल से भी खाएगा न,जिंदा रह पाएगा ।
मक्खी सब कुछ खाय,बैठने कहाँ न जाय,
पर उसे शुद्ध घी तो,कभी नहीं भाएगा।
मिश्री पवित्र और मिश्री से मीठा क्या है,
गधा खाय मिश्री तो ,प्राण ही गँवाएगा।
ग़ुरु जी के देश हितकारी छंद भ्रष्ट नेता,
मंच पर, आएगा तो, बिना सुने जाएगा।
गुरू सक्सेना
नरसिंहपुर मध्यप्रदेश