अर्जुन
अर्जुन
अभिमन्यु के रक्त से रंजित
शव को
अग्नि दाह देते हुए
झुके कन्धों से ले रहा है साँस
क्रोध
लज्जा
पश्चाताप
तीव्र हो उठी इन भावनाओँ का
बोझ
वह नहीं उठा सकता
धंस जाना चाहता है वो
बहना चाहता है वो आंसुओं में
छाती पर बढ़ते बोझ से आतंकित
प्राणहीन अर्जुन
गांडीव तो उठा ले
परन्तु कैसे उठाए इन
भावनाओं को
पर कृष्ण हैं कि
रुकना जानते नहीं
यह सभ्यता है
मनुष्य की खोज की कहानी
जो साथ चले इसमें
बस वही रहे
शेष सब मिट्टी है
युद्ध रत तो अर्जुन को होना होगा
बिना विश्राम के
शांति
जो सहज सुगम है
वह तो उसके
राज्याधिकार में है ही नहीं !
शशि महाजन-लेखिका