अर्चना कुमारी पॉल : केंद्रीय सूचना आयोग में आरटीआई वाद दायर करनेवाली पहली महिला
केंद्रीय सूचना आयोग में आरटीआई वाद दायर करने वाली पहली महिला अर्चना कुमारी पॉल का जन्म 3 फरवरी 1986 में कटिहार, बिहार के मनिहारी अंचलान्तर्गत ऐतिहासिक ग्राम ‘नवाबगंज’ में । पिता श्री काली प्रसाद रिटायर्ड डाककर्मी हैं, जिनका नाम फिलाटेलिक प्रतिभान्तर्गत ‘लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स’ में कई बार दर्ज़ है । महर्षि मेंहीं के अनन्य भक्त थे, उनके दादाजी स्व. योगेश्वर प्रसाद ‘सत्संगी’। जिनकी जीवनी 1942 अगस्त आंदोलन के सेनानी के तौर पर भारत सरकार के पुस्तकों में प्रकाशनार्थ स्वीकृत हुई थी।
सुश्री अर्चना कुमारी की शिक्षा बी एन एम यू से जंतुविज्ञान में बी.एस-सी ऑनर्स, इग्नू दिल्ली से इतिहास में स्नातकोत्तर सहित कंप्यूटर शिक्षा भी शामिल है। उन्हें बिहार सरकार के शिक्षा विभाग अंतर्गत वर्ष 2013 में सिर्फ़ 6 माह में 10 नियुक्ति -पत्र प्राप्त हुई, जिसे एक अनूठा ‘वर्ल्ड रिकॉर्ड’ मान इंडिया बुक ऑफ रिकार्ड्स, वर्ल्ड रिकॉर्ड्स इंडिया, मारवेलस रिकार्ड्स बुक, असिस्ट वर्ल्ड रिकॉर्ड्स, रियल वर्ल्ड रिकॉर्ड्स, इंडियन टैलेंट्स आर्गेनाइजेशन, बिहार बुक ऑफ रिकार्ड्स इत्यादि ने अपने संस्करण में जगह दी, तो लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड्स ने उनकी कई रिकॉर्ड्स शामिल किए।
सुश्री अर्चना कुमारी पॉल संभवत: भारत के सबसे युवा महिला ग्राम कचहरी सचिव सहित बिहार की पहली महिला ग्राम कचहरी सचिव रही हैं । इन्होंने आई ए एस सहित सैकड़ों अकादमिक और प्रतियोगितात्मक परीक्षाएं दी हैं, जिनमें पुलिस परीक्षा भी उत्तीर्णता लिए शामिल है।
सूचना का अधिकार अधिनियम-2005 के अंतर्गत केंद्रीय सूचना आयोग में ‘द्वितीय अपील’ वा दायर करनेवाली भारत की पहली महिला है । इसतरह से वे पहली महिला आरटीआई एक्टिविस्ट भी हैं। आल इंडिया रेडियो के एक कार्यक्रम ‘पब्लिक स्पीक’ के माध्यम से इनकी खोज ‘प्लास्टिक खानेवाले कीड़े ‘ पर विशद चर्चा चली, जिनके पेटेंट को लेकर आवेदन संबंधित विभाग में विचाराधीन है ।
सुश्री अर्चना कुमारी ने पुरुषप्रधान समाज में सम्मिलित कई परंपराओं के विरुद्ध अभियान चला रखी हैं, जैसे- सदियों से मनाये जाने वाले ‘भैयादूज’ की परम्परा को बदलकर ‘बहनदूज’ क्यों नहीं ही किया जाय, तो वे खुद अपने भाइयों से राखी बँधवाती हैं, क्योंकि ‘बहन’ भाइयों से ही सिर्फ रक्षा की गुहार क्यों करें?
अपने घर पर ऐसे पौधे (हरवाकस, पसीज, निःस्वार, कटकलेजा इत्यादि) को संरक्षण प्रदान की हैं , जिनके लिए सुश्री अर्चना और उनके परिवारजनों का दावा है कि इस पौधे की पत्ती का जूस नियमानुकूल पीने से खाँसी और टी बी रोग दूर हो जाते हैं। सिंधु घाटी सभ्यता से प्राप्त ‘अबूझ चित्रलिपि’ को वे फख़्त सांकेतिक-सन्देश भर मानती हैं, न कि किसी पढ़नेयोग्य लिपि की अबूझ-पहेली ! अन्य मानवीय पहल लिए ‘रिकॉर्ड ‘ स्थापन में बिना गर्दन की सहायता से घंटों अपनी सिर को 180 डिग्री के विन्यास नचा सकती हैं, तो हाथ की मध्यमा अँगुली के जोड़ की संधिस्थल लिए घंटों लगातार अँगुली चटका सकती हैं। सप्ताह के कई दिन उनके विचारों को दैनिक अखबारों के माध्यम से ‘पाठकों के पत्र’ में पढ़ सकते हैं । रचनात्मक कार्यों लिए वे सतत सक्रिय हैं ।
सम्प्रति, वे शिक्षिका हैं । वे शिक्षकों को मजदूर जैसे सोचने वाले लोगों, अभिभावकों, अधिकारियों और इसतरह की सोच रखनेवालों को बेबाक कहती हैं कि शिक्षक को अगर स्वाभिमानजीवी के रूप में नहीं छोड़ेंगे, तो वे कभी भी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान नहीं कर सकते हैं, क्योंकि शिक्षक मजदूर नहीं, अपितु देवी-देवता, राष्ट्रनिर्माता व मार्गदर्शक होते हैं!