अरे वो बाप तुम्हें,
अरे वो बाप तुम्हें,
ज़िंदगी सौंप रहा है अपनी,
और तुम कहते हो,
तुम्हें दहेज़ चाहिए!!
बाप के कर्ज का मोल,
अब तक चुका नहीं,
सर से पगड़ी फिसल गई,
और तुम कहते हो,
तुम्हें दहेज़ चाहिए!!
©️ डॉ. शशांक शर्मा “रईस”
अरे वो बाप तुम्हें,
ज़िंदगी सौंप रहा है अपनी,
और तुम कहते हो,
तुम्हें दहेज़ चाहिए!!
बाप के कर्ज का मोल,
अब तक चुका नहीं,
सर से पगड़ी फिसल गई,
और तुम कहते हो,
तुम्हें दहेज़ चाहिए!!
©️ डॉ. शशांक शर्मा “रईस”