अरे मेघ! मेरे दूत बन जाओ
अरे मेघ! बरस रहे हो क्या,
थोड़ा सा साथ अपने
आज हमें भी बरसने दो
बंजर है हमारी ख्वाहिशों की जमीं
उसे भी थोड़ा नमी हो जाने दो
अरे मेघ! पिघल रहे हो क्या
थोड़ा आज हमें भी
साथ अपने पिघलने दो
रुक्ष हो गया है हृदय
सदियों से हत होते-होते
अरे मेघ! ये जो श्वेत लकीरें
साथ तुम्हारे गर्जन कर रही हैं
कभी इन्होंने हमारे अंतर में भी
पंचम स्वर में नाद किया था
औ’ बन गई थी आशाएँ राख की ढेरी
अरे मेघ! ये जो तुम साथ अपने
स्याह रुई के गोलों को लिए फिरते हो
जिनमें अथाह जलराशि को तुम समेटे हुए हो
इसी तरह हमारे इन कजरे नयनों ने
असीमित समय तक अश्रुजल को ढोया है
अरे मेघ! ये जो तुम बिना सावन भी
अपनी आमद दिखा देते हो
विरह की वेदना को जो और बढा़ देते हो
क्या तुम्हारी इस बरसती रुक्ष देह को
हम प्रीत के मारों पर तरस नहीं आता!
अरे मेघ! ये शर-सी बूँदें तुम्हारी
हिय में चुभती सी जाती हैं
विकल होकर यादें सर उठाती हैँ
मानो वो यूँ हमें नितांत एकांत छोड़ गए हैं
पर प्राण तो हमारे वे संग अपने ले गए हैँ
अरे मेघ! भरी यामिनी में तड़पते
उस चातक को देखा है कभी
अपने प्रिय के लिए तड़पती उसकी
चीत्कार को सुना है कभी
उसकी वेदना को मापने का प्रयत्न किया है कभी
अरे मेघ! जैसे किसी हिम को
पावक की गोद में बैठा दिया गया हो
और वाष्प बनकर दम तोड़ती उसकी देह को देखना
किस तरह शनैः शनैः उसका वजूद
स्वयं को पिघला देता है
अरे मेघ! मानती हूँ सकल संसार के लिए
वो हमारा त्याग कर गए हैं
जग को राह दिखाने के लिए प्रयाण कर गए हैं
पर क्या तृण सम भी मुझ पर विश्वास न था!
नहीं बन सकती थी मैं उनकी राह का अवरोधक
अरे मेघ! नहीं मुझे कोई शिकायत है उनसे
पर राहुल को कैसे समझा पाऊँगी मैं
निज व्यथा का गान क्या कर पाऊँगी मैं!
प्रश्न बहुतेरे हैँ जो हिय में घुमड़ आ रहे हैँ
मुझ अभागन के हिय को जो जला रहे हैँ
अरे मेघ! हो सके इतना तो मेरे दूत बन जाओ
मेरे अश्रु की कुछ बूँदें बुद्ध पर बरसा आओ
शायद उन बूँदों की नमी मेरी व्यथा उन तक पहुँचा दे
जो कहना चाहती हूँ उनसे वो उन्हें समझा दे
करबद्ध करूँ विनती हे नभराज इतना कर देना
मेरे अशांत मन को शांत करने का ये प्रयत्न तुम कर देना
सोनू हंस