अरे मुंतशिर ! तेरा वजूद तो है ,
अरे मुंतशिर ! तेरा वजूद तो है ,
खुद टूटा हुआ सा ,बिखरा हुआ सा ।
तू क्या जाने हमारे वेद पुराण ,
हमारी पुरातन महान संस्कृति ।
ऊंह!!बना फिरता है बड़ा लेखक ,
एक स्वार्थी ,लालची,मूर्ख अज्ञानी सा।
अरे मुंतशिर ! तेरा वजूद तो है ,
खुद टूटा हुआ सा ,बिखरा हुआ सा ।
तू क्या जाने हमारे वेद पुराण ,
हमारी पुरातन महान संस्कृति ।
ऊंह!!बना फिरता है बड़ा लेखक ,
एक स्वार्थी ,लालची,मूर्ख अज्ञानी सा।