अरे माँ!
अरे माँ !
सुनो ना,
मेरे भी तो कुछ सपने हैं..
माना वो उम्र में मुझसे दुगुने हैं!
पर मेरे मन की ज़मीन पर उगने हैं..
अरे माँ ! मुझे पता है,
बहुत सारी उगंलियाँ हैं,
जो मुझ पर उठनी हैं
जिनकी उम्र बस कल जितनी है!
अरे माँ !
सुनो ना!
मेरे भी कुछ नियम कड़े हैं,
वो भी अपनी जिद पर अड़े हैं..
कई अपनों के दिल
अभी बदलने हैं..
अरे माँ !
मुझे चुगने दो,
स्वतंत्रता के दाने,
समझने दो
नये युग के ताने-बाने
रचने तो दो
एक नया इतिहास!
जिसके ज़िक्र में
नहीं होगा कोई दास!
ना होगा जातिवाद..
ना किसी निर्धन का परिहास..
जहाँ मुक्त होगा इंसान
निश्छ्ल मानवता के साथ!
स्वरचित
रश्मि लहर
लखनऊ