“अरे ओ मानव”
आज के आदमी नारीत्व का
सम्मान करना नहीं जानते,
सुकून प्यार की दो बातों में है
यह बात क्यों नहीं पहचानते?
क्षणिक खुशी के लिए
ठेके और बार में ठोकर खाते हैं,
मुझे परिवार कमाने की चिंता है
यह कहकर नारी पर झललाते हैं,
अरे मानव !तुमसे ज्यादा चिंतित है नारी
जो विभिन्न रूपों में निभाती है कर्जदारी,
जिस दिन नारी गलियों में उतरेगी
अपनी टेंशन मिटाने को,
मर्द को जगह नहीं मिलेगी
उस दिन में छुपाने को,
परिवार के साथ वक्त बिता कर तो देख मानुष
सारी जन्नतें यही बस्ती है,
भगवान भी पत्नी के पल्लू में सुकून पाता था
अरे मानव तेरी क्या हस्ती है,
दिखावटी खुशी क्षणभंगुर है
कुछ ही पल में उड़ जाती है, नारी ही वह दीपक है, जो
तेरी खुशी के लिए स्वयं को जलाती हैl