“अरूणाभा-एक बेटी के प्रति पिता का हृदय”
वह सुन्दर सी, कोमल
हाथों में जब मेरे आयी,
पुलकित हुआ हृदय मेरा
जब देखा
चेहरे पर लालिमा छायी ।
प्यारा सा सुस्मित चेहरा
लग रहा हो जैसे चन्द्रानन
उत्ताल हुईं हृदय की लहरें
जब देखे
उसके कोमल नयन ।
बज रहीं बधाइयाँ ढेरों
घर-उपवन मे खुशहाली छायी
बाबुल सबको कहते-फिरते
मेरे आँगन रानी बिटिया आयी ।
प्रफुल्लित हो उठा हृदय मेरा
जब उसके मुख से निकला पहला शब्द
लगा जैसे कि
पुष्पों ने पंखुड़ि-पट खोले
कर गया वो सबको नि:शब्द ।
तब विचार मन-मस्तिष्क मे कौंध गया
क्यों बेटी का जन्म नहीं भाता
इस दिव्य-रत्न अवतारण का
क्यों जग मे सम्मान नहीं होता ?
क्या जग को मिथ्या समझूँ !
या समझूँ उस सच्चाई को
दिया अनुपम वरदान विधाता ने
क्यों न स्नेह करूँ “अरूणाभा” को ?
कम नहीं हैं बेटियाँ किसी से
चाहों तो इतिहास के पन्नों को
पलट देखो
गार्गी, अपाला और रानी लक्ष्मीबाई
जग में जिसने अपनी पहचान बनाई ।
आधुनिकता की बात करें तो
बेटियों ने परचम लहराया
डॉक्टर, इंजीनियर और रेसलर बनकर
देश का सम्मान बढ़ाया ।
इसलिए निवेदन है सबसे
इस कुसुम-कलिका को विकसने तो दो
इसकी सुगंधित “अरूण-कान्ति” को
सर्वत्र बिखरने तो दो ।।
(अरूणाभा-लाल कान्ति वाली)
-आनन्द कुमार