अरुण छंद ( हाड़ारानी)
अरुण छंद 20मात्राएँ
5/5/10पर यति
अंत में लघु गुरू
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हाड़ारानी
नर लडें जंग की खेलकर पारियाँ,
तो नहीं,कम रहीं, देश की नारियाँ।
फूल सी देह को आग में राख की।
प्राण दे, आन रख, वीर कुल शाख की ।
हर तरह,से रखी, वंश मरयाद है ।
वो सभी, को अभी,याद है याद है ।
जो लिखा, देश के,खास इतिहास में।
शीश ही,दे दिया काट मधु मास में।
युद्ध में, मन लगे, जो निशानी बने ।
तब सफल,प्रेम की, ये कहानी बने ।
कर्म से, धर्म से, देश भक्ति जुड़ी।
प्रेम के पंथ से,विघ्न लख ना मुड़ी।
ना गिरी,डाल कट , चाह के झाड़ की।
है कथा आस्था पूर्ण मेवाड़ की।
वीर पति, की प्रिया, थी उमंगें लिये ।
पल खुशी,के नहीं, साथ दो भी जिये।
बस तभी? युद्ध का,था सँदेशा मिला ।
तज मिलन, सेज वो, कर सका ना गिला ।
चल पडा, जंग को, युद्ध में हित दिखा ।
पत्र घर एक खुद, प्राणप्रिय को लिखा ।
याद में, खो रहा, मन तुम्हारे लिए।
हो सके, भेज दो, कुछ हमारे लिए।
भूलकर, मैं तुम्हें, जंग में लड़ सकूँ।
हो फिकर, कुछ नहीं, शत्रु पर चढ़ सकूँ।
पत्र को, बाँचकर, मुस्कराई कली ।
युद्ध में भी मुझे,चाहता है अली।
कर कलम शीश निज, एक ही वार से।
थाल में,रख दिया, है बडे प्यार से ।
लो पहिन, ये सजन, खास मुँडमाल को ।
वैरियों से बने काट दो जाल को।
देश हित, तुम लडो,धन्य तन हो गया।
मानलो ,बिन मिले, ही मिलन हो गया।
वीरता से भरी, देश की नारियाँ।
त्याग तप,ले जलीं ,ओज चिनगारियाँ ।
कोटिशः,है नमन, खास इतिहास को।
कर गईं, हैं सबल,वीर विश्वास को।
दुष्ट से दुष्ट भी,सामने आ डरा।
शौर्य से ,है भरी, राजपूती धरा।
प्राण से, भी बड़ा, देश को मानले ।
वो धरा, काल से , भी खडग तान ले ।
गुरू सक्सेना
नरसिंहपुर मध्यप्रदेश
3/7/23