प्रेम हृदय राजता
प्रेम* हृदय पर राजता ,सर चढ़ता है यौन ।
व्यक्त न हो शब्दों कभी ,रखता गहरा मौन ।।1
किया प्रतीक्षा हिय बिता ,आँखों में दिन रात।
प्रिय लहरों की प्रीति से ,लौटी टकरा बात ।।2
यही परीक्षा की घड़ी ,तौल रही है धैर्य ।
नित प्रति दृढ़ संकल्प लो ,बढ़ता जाता शौर्य ।।3
*विष घोले अपने सदा ,होता है अलगाव ।
क्षुद्र तृप्ति मन के लिए ,खेले नित नव दाव ।।4
मिलन आत्म से आत्म का ,पुष्पित नित नव पद्म ।
फैल रही है गंध अब , वेश टूटता छद्म ।।
डा. सुनीता सिंंह ‘सुधा’शोहरत
स्वरचित सृजन
13/7/2021