अरुणिम लाली संग भोर हुई
अरुणिम लाली संग भोर हुई।
दिनकर ने मन की डोर छुई।।
उपवन से शबनम की बूंदें,
गायब ज्यों कोई छुई-मुई।।
रवि रश्मि रथ आरूढ हुए,
जीवन ने नव उत्कर्ष छुए।
किरणों की जल में छाया से,
जल चर भी अति उल्लसित हुए।
रजनी की काली छाया भी,
डरकर लाली से भाग रही।
जन जीव सभी अब चहक उठे,
झूमे खुश होकर आज मही।।
इक नवजीवन संचरित हुआ,
आशाओं ने नव-सार छुआ।
बहशी कोरोना से कब तक,
पायें मुक्ती कर रहे दुआ।।