अरसात सवैया गुरू महिमा
अरसात सवैया
7भगण 1 रगण
गुरू महिमा
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साँचहुँ चंचल है मन की गति,
एकहि ठौर न जो थिर हो रहे।
लालच लोभ सतावत काम,
समेटत पाप निरन्तर ही बहे।
आवत अंत बचे यमफंद,
व दारुण कष्ट न किंचित भी सहे।
पार लगे भव सागर से वह,
जो गुरु के पद पंकज जा गहे।
गुरू सक्सेना
नरसिंहपुर मध्यप्रदेश
30/7/22