अरमान
बड़े अरमानों से पाल-पोस कर
पढ़ाया और लिखाया था
काटकर पेट उन्होंने अपना
निवाला तुझे खिलाया था
पढ़ाने के खातिर अपना
सब कुछ दांव पर लगाकर
गर्व किया हरदम तुझ पर
और कर्तव्य निभाया था
एक समय का भोजन करके
तिनका तिनका जोड़ा था
साधारण कपड़ों में रहकर
इच्छाओं को छोड़ा था
अभाव में जीते जीते दोनों ने
सारी उम्र बिता डाली
लाल की खातिर उन्होंने अपना
जीवन भी होम कर डाला था
समय का पहिया मुन्ना को
पढ़ने विदेश में ले आया
हुई पढ़ाई वहीं नौकर हुआ
वह देश उसे बहुत भाया
बड़े ही खुश थे दोनों
बेटा ऊंचाई पर पहुंच गया है
लेकिन कोमल मन में उनके
कहीं छुपा था डर का साया
पंख लगाकर समय
ना जाने कब काफूर हुआ
दोनों की आंखों का तारा
ना जाने कैसे दूर हुआ
सोचा था रहकर जीवन में
सुख दुख साथ में बांटेंगे
भाग्य की विडंबना देखिए
लाल को देखना भी दुश्वार हुआ
लाल को देखना भी दुश्वार हुआ…
इति।
इंजी. संजय श्रीवास्तव
बालाघाट मध्यप्रदेश
(स्वरचित)