*** अरमान….!!! ***
“” चल फिर दो कदम चलते हैं…
जिंदगी के किताब को फिर पढ़ते हैं…!
कुछ दिन पहले का ये सफ़र…
बस यूं ही कैसे गुजर गए,
कोई अनुमान नहीं…!
कुछ खट्टे-मीठे का अनुभव…
बस यूं ही हम में मिल कब बिसर गए ,
कोई अहसास नहीं…!
कुछ ख्वाब जगे और कुछ मिट भी…
पर हम दोनो यूं ही चलते रहे…!
आ अब, फिर कुछ कदम और…
यूं ही आगे बढ़ते रहें…!
ये लाखों भिड़ चाहिए थी कब मुझे…
बस तुम्हारा…
ये आस-पास होना ही काफी है…!
कब चाहिए थी मुझे…
उन राज-महलों सी ठाठ-बाट,
बस तुम्हारा यूं ही साथ होना काफी है…!
बिन साजों-श्रिगार…
मैं तो यूं संवर जाती हूँ…!
ये कंगन, ये काजल और ये बिंदिया के…
रंग सारे तुम्हारे हैं…!
बस यूं ही हाथ थामे रहना सदा…
ये तिनके की कुटिया ही,
सबसे प्यारी मेरी अटारी है…!
मांग की कुछ आदत नहीं मुझे…
हां… बस तुम यूं ही,
मेरी अर्थी तक साथ निभा देना…!
चल फिर दो कदम और चलते हैं…
आ जिंदगी के किताब को,
फिर पढ़ते हैं..!! “”
*************∆∆∆************