— अरमान बहुत – खुशियाँ कम –
खुशियाँ कम और अरमान बहुत हैं
जिस को देखो यहाँ परेशां बहुत हैं
दूर से नजर मारी तो शान बहुत है
पास जाकर देखा तो रेत ही बहुत है
सच का तो कोई मुकाबला नही यहाँ
पर झूठ का बोलबाला बहुत है
आदमी ही यहाँ मिलता है बमुश्किल से
कहने को शहर भर में इंसान बहुत हैं
जिससे मिले उस की फितरत अलग है
आज लालच से भरा इंसान बहुत है
करना चाहता नही जो काम हाथों से
क्यूं की चलने को उस की जुबान बहुत है
अजीत कुमार तलवार
मेरठ