अरमानों की बरसी..
“बांध लेते हैं अक्सर,
धड़कते दिलों के गीत..
अपनी सहर भरी ,
मीठी आवाज़ों में..
जिन में हल्की सी ,
थरथराहट के साथ..
मचलते हुए अरमानो की सरगोशियां,
तुम्हारे मेरे बीच की इस कड़ी को..
बांध लेतीं हैं मजबूती से;
लगता है की ये दुनिया,
तेरी ही बाहों में सिमट कर ,
खत्म हो जाएगी यूँही सांसे..
न खयाल दुनियां का,
न ही गम दुनियादारी के..
यूँ की जैसे मैं जो था,
तेरी बाहों में सिमट कर..
मैं रहा ही नही , जो मैं था..
और जब आज़ाद हुआ,
सोचता हूँ हसीन ख्वाब था..
हक़ीक़त था या अफसाना,
जो मेरे टुटे प्यासे ख्वाबों ने.
जलती चांदनी में खुली आँखों से,
एक ख्वाब बुना होगा,
अपनी अरमानो की बरसी पर..”