“अरमानों का देहांत “(हास्य व्यंग कविता)
“अरमानों का देहांत ”
(हास्य व्यंग कविता)
एक थी लड़की खड़ी अकेली
मेरे लिए थी नयी नवेली।
मिठी सी थी उसकी बोली
उसकी सूरत थी बड़ी भोली।
उसका भोलापन मुझे भा गया
और
मेरा दिल उस पर आ गया।
देखते ही उसको दिल मेरी शायराना हुआ
मगर करीब उसके जाते ही मन मेरा कायराना हुआ।
सोचा उससे कह दूँ अपने दिल की बात
पर बंधा न पाया दिल मै इतनी औकात
मैं हताश, निराश, बेबस, लाचार जैसे ही पिछे मुड़ा
मेरे कानों पर ध्वनि का एक कंप पड़ा
मैने सुना उस ओर से एक मधुर आवाज़ आई
उसने कहा क्या?कुछ कहने आये थे मेरे भाई
उसके भाई कहते ही मुझे आघात हुआ
एेसा लगा जैसे मैं बरबाद हुआ
उसके भाई कहते ही मेरे मन के सारे मैल धुल गये
और, मेरे सारे के सारे अरमाँ मिट्टी में मिल गये
मेरी एेसी हालत देखकर हँस रहे थे सब खुलकर
आया था मैं सैयां बनने जा रहा था भैया बनकर।
रामप्रसाद लिल्हारे
“मीना “