अय हमसुखन वफ़ा का तक़ाज़ा है अब यही
अय हमसुखन वफ़ा का तक़ाज़ा है अब यही
मैं छोड़ दूं तेरा शहर जो तू कहे गली
क्यूंकर यकीन आये मुहब्बत का हमनशीं
कोई खिला ना फूल ना दिल की मिरे कली
निकलेगी बन के आग बरसेगी बन घटा
दिल की तमाम ख्वाहिशें जो यूँ की यूँ दबी
रुदाद-ए-मुहब्बत कौन सुनने मेरी रुका
दुनियाँ में जितने लोग हैं सब के सब बिज़ी
होता है यूँ गुमान क़दम-क़दम ए हमसफ़र
रस्ता है मेरा अब यही मंज़िल है यही
शादी के वक़्त आजकल कहते हैं सब यही
मैं इस तरहा से और तू उस तरहा से जी
अब जान गये हम ये निशाना है तीर पर
अंधेरों को ‘सरु’चाहिए किस्मत की रोशनी