अम्मा… मुझको भी स्कूल में पढ़ने जाना है।
अम्मा…
मुझको भी स्कूल में पढ़ने जाना है !!
पिता जी से कह दो मेरा भी…
दाखिला विद्यालय में करवाना है !!
मैं भी पढ़ लिखकर,
बाबा का नाम रौशन करूंगी !!
किसी भी मामले में,
पिता को ना शर्मिंदा करूंगी !!
भैया जैसा,
मेरा भी हृदय करता है शाम को पढ़ने बैठूँ।।
अब पिताजी,
मैं इसके लिए बोलो क्या कुछ कर दूं।।
खूब परिश्रम करके…
पिताजी की पहचान बनाना है !!
अम्मा…
मुझको भी स्कूल में पढ़ने जाना है !!
क्यों ईश्वर तेरी सृष्टि में,
कन्या का होता यह अपमान है !!
कुछ भी करले महिला,
होता वह सब निष्काम है !!
मानव समझे हमको क्यों बस अपने भोग की चीज हमेशा।।
गिद्ध नजर है बन जाती है उसकी गर दिख जाए मेरा तन खुला ज़रा सा।।
प्रेम मिले ना घर में मुझको,
निकलूँ घर से बाहर मैं कैसे !!
अम्मा समझाओ बाबा को,
पढ़ लूं स्वयं से मैं कैसे !!
तेरी परछाई हूँ माँ मैं…
बस बाबा का मान मुझे बन जाना है !!
अम्मा…
मुझको भी स्कूल में पढ़ने जाना है !!
दूर गगन मे उड़कर आऊं मेरा भी मन करता है।।
अपने पैसों से पिताजी का हाथ ये मेरी इच्छा है।।
शायद यह सब मैं स्वयं से कर लूंगी यदि मुझको भी विद्यालय भेजा जाएगा।।
यह समाज मुझको जब अपनी घर की बिटिया जैसी इज्जत सबसे दिलवाएगा।।
वेद ग्रँथों में…
तुम औरत का देवी रुप में वर्डन पाओगे।।
हे पुरुष झूठे सम्मान की ख़ातिर तुम…
कब तक मुझको स्वयं के समान ना मानोगे।।
मुझको कन्या रहकर ही…
अपने पिता से बेटों सा सम्मान पाना है !!
अम्मा…
मुझको भी स्कूल में पढ़ने जाना है !!
ताज मोहम्मद
लखनऊ