अम्मा (छोटी कहानी)
अम्मा (छोटी कहानी)
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सारे मोहल्ले में लोग उन्हें अम्मा कहते थे। असली नाम क्या था, यह तो किसी को नहीं मालूम । बड़ा ही मधुर बोलती थीं। सबसे प्यार मोहब्बत से बात करती थीं। पूरे मोहल्ले में बड़ी- बूढ़ी होने के नाते भी सब लोग उनकी इज्जत करते थे और अम्मा भी किसी को प्यार लुटाने में कोई कसर नहीं छोड़ती थीं। जब भी जाओ, मिलो ,गले से लगा लेती थीं और पीठ पर हाथ सहलाती थीं तो ऐसा लगता था जैसे कोई जादू का असर हो रहा है।
अम्मा के चार बेटे थे। दो विदेश में थे और दो उनके पास रहते थे। सब शांति से जीवन गुजर रहा था। अम्मा भी खुश थीं। उनका परिवार भी खुश था। मौहल्ले के लोग अम्मा से बेहद प्रसन्न थे ।
एक दिन अचानक आवाज आई -“अम्मा खत्म हो गयीं।” मैं घर पर ही था ।आवाज सुनकर अम्मा के घर की ओर दौड़ा। देखा अम्मा जमीन पर ली जा चुकी थीं और उन की दोनों बहुएं आपस में कुछ झगड़ा कर रही थीं। मेरे कानों में आवाज सुनाई दी “पूरी 6 तोले की चूड़ियां थीं। तूने कैसे ले ली? अम्मा तो मेरे पास रहती थीं।”
दूसरी तरफ से शायद छोटी बहू थी जिसका कड़वाहट से भरा हुआ उत्तर था “तुम्हारे पास रहती थीं तो क्या हुआ ? थीं तो हमारी अम्मा …चूड़ियों पर तो हमारा भी हक बनता है । आखिर रहती तुम्हारे यहां थीं मगर खाना तो हमारे यहां खाती थीं। ”
नतीजा यह निकला कि अम्मा बेचारी जमीन पर पड़ी हुई अपनी बेकद्री होते हुए देख रही थीं। मरा हुआ आदमी क्या देखता है ! आंखें मूंदी हुई थीं। ना कुछ सुन सकती थी, ना बोल सकती थीं, ना बच्चों को समझा सकती थीं। अगर अम्मा जिंदा होतीं तो कहती ” ऐसी चूड़ियों से, जो घर में आग लगा दे ,,जंगल में फेंक आना ज्यादा अच्छा “।
सुबह की मरी हुई अम्मा दोपहर के दो बज गए । गर्मी का मौसम था। शरीर से दुर्गंध आने लगी। सारे मोहल्ले वाले इकट्ठा हो गए । कहने लगे “भाई !अब इन्हें श्मशान घाट ले जाने का इंतजाम तो करो ।” दोनों बेटे ठहरे जोरू के गुलाम । उनसे एक शब्द अपनी पत्नियों को समझाने के लिए मुंह से नहीं निकल पा रहा था और दोनों बहुएं तो दोपहर में भी सूरज की तेज किरणों की तरह मानों आग बरसा रही थीं।
आखिर मोहल्ले वालों ने चंदा किया। नाई को बुलाया । अर्थी का सामान जुटाया। दोनों लड़के मुंह फुलाए बैठे रहे। बहुएं एक दूसरे को खा जाने की दृष्टि से देख रही थीं। मौहल्ले वाले अर्थी को लेकर चले तो दोनों बेटों ने भी अर्थी को कंधा दिया। दिन भर अम्मा की याद में बीता । शाम को जब सब लोग वापस आए तो सब लोग यही कह रहे थे कि अम्मा कितनी खुश मिजाज थीं और उनके मरने के बाद सोने के जेवरों पर घर में कितना बड़ा क्लेश चल रहा है ।
अगले दिन सुबह अम्मा के दोनों बेटे और दोनों बहुएं घर के आंगन में जोर- जोर से रो रहे थे । मौहल्ले वाले पहुंचे तो एक बेटे ने बताया कि विदेश से अम्मा के बेटे का फोन आया था । उसे जब पता चला कि चूड़ियों पर झगड़ा हो रहा है तो उसने सब घर वालों को बहुत डांटा और कहा ” तुम सबको 16-16 चूड़ियां मैं अपनी तरफ से दे दूंगा, लेकिन कम से कम अम्मा की याद तो खोटी मत करो।”
रोते हुए छोटी बहू ने बताया कि जब से फोन आया है , हम सब बहुत दुखी हैं और हमें भारी पश्चाताप है । छोटी बहू बोली” मैंने अम्मा की चार चूड़ियां लेकर बहुत बड़ी गलती की । चार चूड़ियों में क्या रखा था ! ”
बड़ी बहू कहने लगी “मन छोटा मत कर दीदी ! चारों चूड़ियां और बाकी की 12 चूड़ियां भी तू ही रख ले। जब सब को इस संसार से जाना ही है ,तो क्या रखना और क्या देना ! सचमुच हमारी बुद्धि भ्रष्ट हो गई थी ,जो हम लड़ने लगे । अम्मा की याद को भुला बैठे ।”
मौहल्ले के बुजुर्ग दीना भाई ने अपनी आंखों से निकलते हुए आंसुओं को पोंछते हुए कहा “कोई बात नहीं बच्चों ! सुबह का भूला अगर शाम को घर वापस आ जाए तो भुला नहीं कहलाता”।
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लेखक :रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश )मोबाइल 99976 15451