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9 Feb 2024 · 1 min read

अम्माँ मेरी संसृति – क्षितिज हमारे बाबूजी

अम्माँ मेरी संसृति – क्षितिज हमारे बाबूजी

काश आज अगर जो अम्माँ होती
होते मेरे बाबूजी
पैरों को उनके फिर गह लेते
अम्माँ जहाँ थी ममता का सागर
बाबूजी संबल का आधार रहे

माँ तो मन की कह लेती थी
चुप रहते थे मेरे बाबूजी
मेरे हर कठिन समय में
पर्वत जैसे खड़े रहे
अपनी व्यथा की कथा कही नहीं – पर
विश्वास से हमको भर देते थे

आधारशिला हमारे तुम थे
यह सत्य किसी अभिव्यक्ति का
मोहताज़ नहीं
हर पल – उनकी है अनुभूति
है उनके होने का एहसास हमें

मुख से होते मूक मगर
अपने स्पर्श से सब कुछ कह देते
मन की स्नेह धारा आंखों से
उनके ही पैरों पर धर देते

काश आज अगर जो अम्माँ होती
होते मेरे बाबूजी
पैरों को उनके फिर गह लेते !!
अम्माँ मेरी संसृति – क्षितिज हमारे बाबूजी !!

Language: Hindi
74 Views
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