अम्बर का दरबार !
बड़ी खलबली मची थी अम्बर के संसार में
छिड़ा हुआ था विवाद चाँद सूरज के साथ दरबार में
भला कैसे करूँ चयवन दोनो के मध्यान में
बनती दोनो से ही शान मेरे आसमान में !!
ना कोई छोटा है ना बड़ा फिर मेरे दरबार में
सूरज देता नया सवेरा तो चाँद देता सपनों को सेहरा
सूरज देख खिलती वसुंधरा तो चाँद देख शर्माता अंधियारा
दोनो से ही सजता मेरा आँगन बिन दोनो न होगा मेरा गुज़ारा !
प्रभाकर अकेला चमकता है ,तो तारों संग महफ़िल सजाता निशाकरा
एक दिखाता नई राह ,एक नई चाहों की राहें बुन जाता
दोनो को सजदा करते सबके हाथ तभी तो होता मेरा भी सत्कार
कैसे कहूँ फिर छोटा बड़ा ?सजता दोनो से ही मेरा दरबार !
तभी आया घूमते हुए एक बादल , काला घना और पानी से भरा ,
मुझको देख छुप जाते तुम्हारे चाँद सूरज न आता नज़र उनका चेहरा
मैं छँट जाऊँ तभी होता साँझ सवेरा
तो फिर बताओ हुआ कौन छोटा और कौन बड़ा ?
तुम भी घबराओ मत , तुम हो तो मिली इनको पनहा
तुमने चाहा तो नाम मिला इन्हें इतना ,
नहीं तो घूमते हैं लाखों चाँद सितारे तनहा तनहा
सब साथहैं तो बात है छोटा बड़ा तो क़िस्मत की बात है
बस क़िस्मत की बात है !!!