अमृत कुंभ
अमृत कुंभ के संगम में,
बस एक बूंद ही मिल जाए,
कृष्णमय हो चंचल मन स्थिर
आज वह एक पल मिल जाए
दूर कहीं हो तुम ही तुम जहाँ,
वृंदावन, ब्रज वहीं तन बस जाए ।
बंसी की धुन मधुर संगीत बन,
तेरा भजन गीत ही सुन जाए।
मैं और तुम बस मुखरित हों
वो पावन अवसर मिल जाए।
महारास ,महाकुंभ,भव्य भव
अश्रुजल निर्मल बह जाए।
पग भर जा न पाऐं पथ पर
दुर्गम संगम दुर्लभ लगता ,
नाभि में अमृत हो अनुभव
तीर असाध्य वो लग जाए।
अमृत कुंभ के संगम में ,
बस एक बूंद ही मिल जाए।।