अमलतास तरु एक मनोहर
तेज ताप पर प्रतिस्पर्धा में
जीत सदा ही है वो पाता ,
पीत वसन में सँवर – सँवर कर
जो लहर – लहर है मुस्काता ।
तप्त हवाओं के स्पर्शों से
है मोहक रूप निखर जाता ,
झूमे यौवन की मस्ती में
मुकुट सुमन धर वह इठलाता ।
अमलतास तरु एक मनोहर
जिसको संग धूप का भाता,
शीतल छाया सबको देकर
बड़े गर्व से शीश उठाता ।
डॉ रीता सिंह
चन्दौसी (सम्भल)